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जमीर बेचकर रकासो के बाजार में आ जाऊ

Ghazal ग़जल

जमीर बेचकर रकासो के बाजार में आ जाऊ,*
 बुजदिल नहीं जो तेरे अख़्तियार में आ जाऊ।


 *जब तलक लिखूंगा, सच्चाई ही लिखूंगा,*
 वो प्यादा नहीं मैं, तेरे साथ सरकार में आ जाऊ।


 *ये सच है तुम हमें दहस्तगर्द बना दोगे,*
 क्या पता बनावती खबरों के साथ अख़बार में आ जाऊ।


 *बेईमानों गद्दारों के साथ नहीं चलता मुझे,*
 मुफलिसी में बेशक, सरे बाजार में आ जाऊ।


 *जमीन दोज हो जाएगी, तेरे जुल्म की ईमारत,*
 बांध के जो मैं सर पे, दस्तार में आ जाऊ।


 *सबसे अफजल है मालिक मेरा जहां में शाहरुख़,*
 खताए सारी माफ अदब से जो, उसके दरबार में आ जाऊ।

*शाहरुख मोईन*
अररिया बिहार

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