लघुकथा
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स्वाबलंबी जीवन पथ
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सोहन और सरिता की शादी हुई दोनों बहुत खुश थे और अपने जीवन को लेकर गंभीर भी।सरिता का मैके सोहन की अपेक्षा आर्थिक रूप से सुदृढ़ थी।जबकि सोहन एक साधारण परिवार से था और एक छोटी सी नौकरी करता था पर वह मेहनती था।
कुछ समय पश्चात सोहन की नौकरी छुट गयी सोहन को परेशान देख उसकी पत्नी ने सोहन के जानकारी के वगैर अपने मैके से मदद मांग ली।इस बात की जानकारी जब सोहन को हुई तो उसे बहुत दुख हुआ और उसने पत्नी से केवल इतना ही कहा तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।
दोनो के बीच लंबी झडप उसी समय से आरम्भ हो गयी।दरअसल सोहन एक खुद्दार और स्वावलंबी इंसान था।इस बात को उसकी पत्नी कभी समझने की कोशिश नही कर पा रही थी।जिसके कारण दोनो की दूरियां बढ़ती गयी।इधर सोहन अपने परिश्रम से खुद का रोजगार लगा दिया था जिसके कारण वह घर पर समय नही दे पाता पर पत्नी कुछ और समझती और झंझट का सिलसिला बढता ही जा रहा था।
आखिर कार वही हुआ जो झंझट के बाद अक्सर होता है दोनों का तालाक।सोहन आज पैसे वाला है पर अकेला?उसकी पत्नी पैसे के साथ है लेकिन अकेली? गलती उन माँ बाप की जिसने दामाद के पूछे वगैर उनके घरेलू जीवन में मदद देकर गलती की और दोनों के जीवन को अकेली कोठरी मे कैद कर दिया।
आशुतोष
पटना बिहार
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