स्त्रीत्व
हज़ारों बार
स्त्रियों को बिखेरा गया
स्त्रियों द्वारा भी और
पुरुषों द्वारा भी उकेरा गया
नही लिखा गया उन पुरुषों को
जो स्त्रीत्व समेटे
भावों के उदघोषक रहे
स्त्रियों तुम में से है कोई
जो लिख सके
द्रोपदी सा अद्भुत चरित्र
कुन्ती सा विह्वल अनुराग
जो पौरुष को व्यक्त करे
ताकि बन सके महाकाव्य
तुम लिख सकोगी
सिया सा वैराग्य
सतीत्व का पहचान के अंश
किसी के पुरुषत्व को
त्याग की मूरत का अभ्यन्श
इतनी लेखकीय चातुरता
नही आएगी जब तक
तब तक कोई भला
कैसे रामायण कहलाएगी
हे स्त्री तुम सदैव से
अभिमानिनी रही
खुद को भी सही से
अभिव्यक्त न कर पाई
सौंप कर खुद को
मुख्य धरा पर कब उतर पाई
तुमसे नही लिखे जा सके
कभी महाकाव्य
और धार्मिक ग्रन्थ
तुम तो बस लेखनी की स्याह
रूप में ही नज़र आ पाई।।
© डॉ ज्योत्सना गुप्ता
गोला गोकरननाथ
जिला लखीमपुर खीरी
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