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तुमसे मिलूंगा Tumse Milunga

तुमसे मिलूँगा

एकदिन फिर तुमसे मिलूँगा मैं
क्योंकि मिलना ही था
उस समय शायद मेरे शरीर नहीं रहेगा
सिर्फ मेरे हृदय, तुमारे लिए प्रेम, व्ययकुलता
मैं अपने घुटनों पर बैठ कर
मेरे शाश्वत, ईश्वरीय प्रेम के पास बैठ कर
तुम्हें  पुकारूंगा अपने हृदय के भाषा से
सभी प्रेमी बारबार मिलते है
एक रोशनी जैसे प्रेम सब कुछ एक पेंटिंग
की तरह , मिलते है बारबार
जो कष्ट हो, कोई बिंदु जिसमें खून के दाग है
सहने की क्षमता
सबकुछ मिट जाएगा
मिलेंगे सबकुछ लेकर
जहाँ पर कुछ धँस जाती है,सभी वेदनाएं
सभी खुली आसमान में उड़ने लगेंगे
उसी समय अग्नि, वायु, जल और मिट्टी से
भेद नहीं रहेगा
तुम्हारे साथ मेरा भी कोई भेद नहीं रहेगा।
प्रेम एक अहसास है
एक किरण हैआशा है
कभी कभी शब्दों में बयान नहीं कर पाते
प्रेम की परिभाषा
यह अनंत है ,ईश्वरीय है, शास्वत है
कभी मौन है,कभी अव्यक्त है
अपूर्ण है, अप्रत्याशित है
प्रेम कभी कुछ अनकही शब्द भी है
जब कुछ कह नहीं पाता प्रेम
तब उंगलियों में रह जाता है
एक भिगी दुब के साथ उलझा हुआ
कभी नंगे पाँव भी चलता रहता है
कभी नदी किनारे , कभी पगडंडियों पर
प्रेम कभी बेख्याली दाँतो में अटक जाता
एक हरे पत्ते के स्वाद में
प्रेम जब कह नहीं पाता अपनी बातें
तब प्रेम की दृष्टि ठहर जाती हैं
एक सीमा में
प्रेम कभी हृदय को मन को उकसाता है
दिल चिर जाती है प्रेम की अनकही शब्द कहने में
कभी प्रेम छटपटाता है, फड़फड़ाता है
बहार आने के लिए
फिर किसी धुन से सुबह में सुनाई देती है प्रेम
प्रेम एक कविता है
एक रुबाई से उतर कर आ गिरता है मन में
प्रेम कभी अव्यक्त नहीं होता है
यह एक पवित्र धारा है जीवन में I
सोचता हूँ कि मैं घूम जाऊं
पीछे मुड़कर देखूँ
बहुत काले सिहाई से हाथ को
ढक कर रखा  है
पूरे हाथ  में काले रंग की सिहाई है
कभी तुम्हारे लिए नहीं सोचा है
कभी कभी जब मैं कोई नदी या खाई के
पास खड़ा होता हूँ
तब चाँद मुझे  बुलाते है
पुकारते हैं  आओ
कभी में गंगा के घाट पर या कोई शमसान
में खड़ा रहता हूँ या नींद में होता हूँ
तब शमसान के लकडी या धु धु कर
जलती चिता के लकड़ियां बुलाते है मुझे
आओ आओ
मैं कहीं भी जा सकता हूँ
कोई भी रास्तें में चल सकता हूँ
लेकिन क्यों जायूँ
तुम्हें भी साथ लेकर जायूँगा
क्योंकि तुम प्रेम हो प्यार हो
एक निश्छल प्रेम
बहती रहती हो धारा में
जाने से पहले तुम से मिलकर जायूँगा
अपने और संबंधों से मिल कर जायूँगा
जाने से पहले तुम्हें प्रेम से देख कर जायूँगा
एक प्रेम के चुम्बन देकर जायूँगा
मैं अभी नहीं जायूँगा
अकेले नहीं जायूँगा समय आने पर विदाई लूंगा ।
मिट्टी की एक खुशबू है
सभी जानते है
यही गंध मैं ढूंढते ढूंढते
एक मिट्टी की ज़मीन डूंड रहा था
मेरे जैसे और भी लोगों ने
जिन लोगों का बचपन, युवा  और यौवन भी
अपने हृदय से लगा कर रखा था
शाम की धूप के समय एक गंध निकलती है
या तो गंघ निकलती है खाली पैर से चलने से
उसी मिठास भरी गंध को कैसे वर्णन करूँ
कोई शब्द नहीं है मेरे पास
कभी दाँतों से घास की पत्ते काटते काटते
कितने स्वप्ने देखा है युवा पीढ़ी
कितने टूटे हुए प्यार की कहानियाँ
एक हरे रंग की जमीन के ऊपर
अभी अभी शाम की अंधकार ने छुपा लिया है
इसमें कैसे धूल गए है प्रतिष्ठा की बातें
इसमें और बहुत कुछ है पीले और सफेद रंग की
फूलों की एक छोटी  सी एक जगह
यहाँ प्यार एक स्पर्श भी है
अभी उसी गंध को ढूंडते हुए
मिल जाती है एक लोहा लक्कड़ और
कंक्रीट की रास्ते, दीवारें
हो सकता है कोई शताब्दी के बाद
कोई एक ज़मीन की खुदाई के बाद
अचानक एक ज़मीन आ जाएगा
एक साधक की तरह
मरे हुए घास को लेकर ज़मीन का एक टूकड़ा
सिर्फ पेन/कलम के निब पड़े है,
कागज ऊपर गिरे है
कोई जुबान नहीं है
सियाही की शीशी भी शून्य है,खाली है
कलम को खोलकर होंटो पर
रखने से एक आवाज़ निकलती है
सिटी जैसी आवाज़
सभी शब्द सुन सकता हूँ
मन के अंदर देख भी सकता हूँ
लेकिन शब्द या  अक्षर लिख नहीं पा रहा हूँ
कलम की ढक्कन पड़े है
जैसे अंधकार को अपने साथ लिया हो
यह शर्ट के ऊपर के भाग में रहना चाहता हो
कहाँ है शर का बन
सभी पेड़ बहुत उच्चे है,
खजूर का वृक्ष भी
मैं यह शब्द और अक्षर को कहाँ रखूँगा
कोई  मिट्टी सी जहाँ पर इसे रोप सकुँ
फिर यह अक्षर,शब्द कोन से
कागज के पृष्ठ पर  दिखाई देंगे
एक कविता , कहानी के रूप में
किसे मैं समर्पित करुँ
मंदिर के साथ एक नदी बहती है
कभी नदी में बारिश के पानी से भरी रहती
कभी बारिश नहीं होने पर सुख जाती है
नदी के एक तरफ है शमसान
राख के ढ़ेर
पंचभूतों की पवित्र राख
एक एक करके चिता जलती है
आग ने लपेट लिए शरीर को
कभी ऊपर के भाग में कभी निचले भाग में
पैर कभी बाहर , कभी हाथ
उदासीन आँखों से देखते रहते है शमसान के यात्री
अभी भी  कुछ माया है इन आखों में
तुम करीब हो मेरे, साँसों में
अब मैं संभाल लूंगा मेरे जज़्बात को
अब प्रेम सिर्फ तुम्हारे लिए है
दिल कुछ और नहीं कहता है
जुबाँ पर एक खयाल ही है तुमारा
आँखों में एक उम्मीद है अब
कुछ खोने का डर या पाने का डर ही
नहीं है
अब तो  इश्क़  पनप रहा है दिल मे
मन में
यह कोई बंदिश नहीं है,
कोई मजबूरी भी नहीं है
दोनों के दिल में एक प्यार की पुकार है
एक ही हालत है
मुझे कहीँ खो जाना है तुम्हारी आँखों मे
एक उम्मीद में
तुमारा प्रेम, मेरे करीब आना एक ईश्वरीय है
बस अब आँख बंद करके सपने देख सकते है
खुदा की मर्ज़ी भी है
शायद जो ख्वाब हमने देखें थे
उसे भी यहीं मंजूर था
की हम दोनों मिल जाए एक ईश्वरीय प्रेम में
शायद खुदा में इसीलिए पल के हम
दोनों को बनाया था
यह तो हीर रांझा जैसा प्यार है जो
हर सदियों में बनाता है
दिल चिर कर देख लो ए खुदा
तुमारा नाम ही है मेरे दिल में
हर बहती  खून की धारा में
जो हैं हमारे शरीर में
यह प्रेम एक प्रवाह है तुम्हारे लिए।
कोई रोक टोक नहीं था
लाल बत्ती की भी नहीं
फिर भी जो शहर कभी थमती नहीं थी
चलती रहती थी
अचानक एक तूफान की तरह रुक गई
एक हवा जो जोर से चल रही थी
ऐसे ही रुक गई कलकत्ता शहर की
सभी गाड़ियां, प्राइवेट बस, टॉक्सी
एक भयंकर हालत में रुक गई
ड्राइवर ने ऐसे जोर से ब्रेक लगाया
की रास्ते के दोनों तरफ़ से
लोगों दौड़ कर आए, भागते भागते आए
बोलने लगे अब क्या होगा
सब गया
फिर उसी समय मजदूर, दुकानदार, फेरीवाला,खरीददारों
सब एक पेंटर के ब्रश में स्थिर हो गए
कोई कुछ बोल नहीं रहे है
सब स्तब्ध है
अचानक सभी ने देखा एक नंगा बच्चा
अपने नन्हे पैर से रास्ते एक तरफ़ दूसरे तरफ
अपने मस्ति चल कर जा रहा है
कभी इस नंगे बच्चे के पैर संभल नहीं पा रहा था
फिर भी चल रहा था
कुछ समय पहले ही बारिश हुई है चौरंगी महल्ले में
अभी धूप एक लंबी सी लगती है एक भाला  जैसे
आसमान के ह्रदय को चीर कर
निचे आ गिरा है
एक मायाबी रोशनी से डूब जाती है कलकत्ता शहर
मैं एक डबल डेकर बस में बैठ कर खिड़की से
एकबार तुम्हें देखता हूँ, और एकबार आसमान को
भिखारी माँ के शिशु
कलकत्ता के जिशु
सब ट्रैफिक को तुम अपने मंत्र से रोक लिए हो
लोगों का चिल्लाना, ड्राइवर के ब्रेक से गाड़ी को रोकना
और सभी का गुस्सा
किसीमें तुम्हें कोई परवाह नहीं है
दोनों तरफ मौत फिर भी तुम संभलते संभलते चल रहे थे
लगता था तुम्हें यह एक क्षण का मानवता है
जैसे तुमने अपने कोमल पैरों  से अभी चलना सीखे हो
पूरी दुनिया तुम पाना चाहते हो
अपने हाथ के मुट्ठी में
इसीलिए तुम संभलते संभलते
चले जा रहें हो पृथिवी के इस कोने से दूसरे कोने में।

रजत सान्याल
 बिहार

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