गज़ल :- चार दिन जिंदगी
जिंदगी का मजा लीजिये,
खुद को यूँ न सजा दीजिये।
दर्दे दिल को दवा दीजिये,
दर्द दिल का दबा लीजिये।
जिंदगी है हँसी शायरी,
बन सके गुनगुना लीजिये।
जिंदगी व्यस्तता से भरी,
वक़्त से भी लड़ा कीजिये।
पिता माता भाई और बहन,
समय सबको दिया कीजिये।
दोस्त से रिश्ते नातों सभी से,
जाम-ए-मोहब्बत पिया कीजिये।
डूबे हो गम के सागर में भी,
हँस के सबको मिला कीजिये।
छोटे हों या बड़े आपसे,
सीख सबसे लिया कीजिये।
फूल हैं राह में गर मिले,
कांटों से भी वफ़ा कीजिये।
जाति धर्मों के झगड़ों को छोड़,
दीवार-ए-नफरत हटा दीजिये।।
प्यार के बोल हैं दो बड़े,
बोल हँस और बता लीजिये।
करनी है गर तरक्की स्वयं,
दूसरों को बढ़ा दीजिये।।
जिंदगी एक महाजंग है,
जीत का हौसला कीजिये।
बोलना वक्त पर बोलना,
"पी.के." चुप भी रहा कीजिये।
साथ क्या किसके जाता यहाँ,
अंत सबसे विदा लीजिये।।
*प्रशान्त कुमार"पी.के."
साहित्य वीर अलंकृत
आशुकवि
पाली - हरदोई
उत्तर प्रदेश
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