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यौम ए विलादत (जन्मदिन) ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान

यौम ए विलादत (जन्मदिन) ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान


 नौशेरा के शेर, बलूच रेजिमेंट की आन, डोगरा रेजीमेंट की शान,महावीर चक्र विजेता, अमर शहीद ब्रिगेडियर  मोहम्मद उस्मान को उनकी *यौम ए विलादत/ जन्मदिन(15 जुलाई)*

*खिराज ए अक़ीदत*

जब कभी भी दुनिया की उत्तम फौजों की बात होती है तो उसमें भारतीय फौज की गिनती पहली पंक्ति में की जाती है। हिंदोस्तानी फौज को यह रूतबा हासिल हुआ है अपने जाँनिसार, बहादुर और पराक्रमी सिपहसलारों की बदौलत, जिन्होंने वतनपरस्ती और फर्ज़ को इबादत का दर्ज़ा दिया। आज़ाद भारत के बहादुर सिपहसलारों की लिस्ट में सबसे पहला नाम आता है *ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान* का, जिन्हें पाकिस्तान के कायदे आज़म मोहम्मद  अली जिन्ना और एहले वज़ीर ए आजम लियाक़त अली ने मुस्लिम होने का वास्ता दे कर पाक फौज में जनरल बनाने का न्यौता दिया था। 

जितनी मोहब्बत के साथ यह न्यौता दिया गया, ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने वतनपरस्ती के सदक़े उसे उतनी ही बेदिली से ठुकरा दिया। यही नहीं नौशेरा का शेर, नाम से पुकारे जाने वाले ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान, पहले अघोषित भारत-पाक युद्ध (1947-48) में शहीद होने वाले पहले उच्च सैन्य अधिकारी भी थे। 15 जुलाई, वर्ष 1912, में जन्में मर्द ए मुजाहिद ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान के पाँव पालने में दिखाई देने लगे थे। महज़ 12 साल की उम्र में वह अपने एक साथी को बचाने के लिए कुएं में कूद पड़े थे और उसे बचा भी लिया था।थोड़ा बड़े होने पर सेना में जाने का मन बनाया और उन्हें ब्रिटेन की रायल मिलिटरी एकेडमी, सैंडहस्ट में चुन लिया गया। मालूम होना चाहिए कि भारत से चुने गये दस सर्वश्रेष्ठ कैडेटों में मोहम्मद उस्मान एक थे। ब्रिटेन में ट्रेनिंग के बाद 23 साल के मोहम्मद उस्मान को  बलूच रेजीमेंट में पोस्टिंग मिली। इधर भारत-पाक का बँटवारा हो रहा था। विभाजन के समय ब्रिगेडियर उस्मान सैन्य अधिकारी थे और उस समय सैन्य अधिकारियों को छूट थी कि वह पाकिस्तानी सेना में जाना चाहते हैं या फिर हिन्दुस्तान के साथ रहना चाहते हैं। पाकिस्तान जहाँ तमाम फौजी अपसरों को बड़े ओहदे का लालच दिखाकर अपनी सेना में शामिल कर रहा था तब ब्रिगेडियर उस्मान ने अपने देश को छोड़ कर पाकिस्तान जाने से इंकार कर दिया। बँटवारे के बाद बलूच रेजीमेंट पाकिस्तानी सेना के हिस्से चली गयी। तब उस्मान डोगरा रेजीमेंट में आ गये। बँटवारे के बाद (1947-48) दोनों देशों में अघोषित लड़ाई चल रही थी। पाकिस्तान भारत में घुसपैठ करा रहा था। कश्मीर घाटी और जम्मू में हालात अच्छे नहीं थे। उस्मान पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे। उनकी झनगड़ में तैनाती थी। झनगड़ का पाक के लिए सामरिक महत्व था। मीरपुर और कोटली से सड़कें आकर यहीं मिलती थीं। 25 दिसंबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना ने झनगड़ को कब्जे में ले लिया। लेफ्टिनेंट जनरल के. एम. करिअप्पा तब वेस्टर्न आर्मी कमांडर थे। उन्होंने जम्मू को अपनी कमान का हेडक्वार्टर बनाया। लक्ष्य था - झनगड़ और पुंछ पर कब्जा करना और मार्च, 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान की वीरता, नेतृत्व व पराक्रम से झनगड़ भारत के कब्जे में आ गया। उन्हें नौशेरा का शेर भी कहा जाता है। तब पाक की सेना के हज़ार जवान मरे थे और इतने ही घायल हुए थे, जबकि भारत के 102 घायल हुए थे और 36 जवान शहीद हुए थे।पाकिस्तानी सेना झनगड़ के छिन जाने और अपने सैनिकों के मारे जाने से परेशान थी। उसने घोषणा कर दी कि जो भी उस्मान का सिर कलम कर लायेगा, उसे 50 हजार रुपये दिया जायेगा। पाकिस्तान लगातार झनगड़ पर हमले करता रहा। अपनी बहादुरी के कारण पाकिस्तानी सेना की आंखों की किरकिरी बन चुके थे उस्मान। पाकिस्तानी सेना घात में बैठी थी। 3 जुलाई, 1948 की शाम, पौने छह बजे होंगे उस्मान जैसे ही अपने टेंट से बाहर निकले कि उन पर 25 पाउंड का गोला पाकिस्तानी सेना ने दाग दिया। उनके अंतिम शब्द थे - हम तो जा रहे हैं, पर ज़मीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्ज़े में नहीं जाना चाहिए।पहले अघोषित भारत-पाक युद्ध (1947-48) में शहीद होने वाले वे पहले उच्च सैन्य अधिकारी थे। राजकीय सम्मान के साथ उन्हें जामिया मिलिया इसलामिया कब्रगाह, नयी दिल्ली में दफनाया गया। जनाजे में गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और शेख अब्दुल्ला जैसे पहली पंक्ति के लीडर शामिल हुए। शहीद होने के बाद ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को उस समय के सबसे बड़े फौजी पुरस्कार  *महावीर चक्र* से नवाज़ा गया। अविवाहित होने के कारण वो अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा ग़रीब और बेसहारा बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे। नौशेरा के तकरीबन 150-200 यतीम बच्चों की परवरिश और पढ़ाई लिखाई का ख़र्च ब्रिगेडियर उस्मान अपनी तनख्वाह से उठाते थे।
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अनेक देशों में भारतीय पराक्रम की पहचान बनने के सबब उन्हें कमउम्र में ही तरक़्क़ी मिलती गयी और वे ब्रिगेडियर बन गए। जब-जब भारतीय फौज की जवांमर्दी, वतनपरस्ती और पराक्रम का जिक्र होता है ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का नाम  बड़े अदब और एहतराम के साथ लिया जाता है।

*महावीर चक्र विजेता अमर शहीद ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान*
अमर रहें।

अब्दुल हमीद इदरीसी,
हमीद कानपुरी,
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष,
यूनाइटेड इदरीसी फ्रंट,
मीरपुर, कैण्ट, कानपुर।

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