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हमीद कानपुरी के मुक्तक Hamid kanpuri ke muktak

तिरंगा


फर फर  फहरा  खूब  तिरंगा।
जन जन का  महबूब  तिरंगा।
इसकी अज़मत सबसे आला,
भारत   का   मतलूब  तिरंगा।


क़ातिल


रूप  बदलकर  आया क़ातिल।
दहशत भर कर लाया क़ातिल।
मौत  बना   जो   घूम   रहा  है,
जर्जर सी  है   काया  क़ातिल।


 वाइरस


हर किसी को नहीं  हम ख़ुदा मानते।
वाइरस  को महज़  इक वबा मानते।
हो गया कुलजहां आज दहशतज़दा,
मर्ज़ सब  सेर इस  को सवा  मानते।

 रिवायत


पुरानी      रिवायत    हटानी   पड़ेगी।
रिवायत   नयी  इक   बनानी  पड़ेगी।
मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत  हो जिसमें, 
सियासत  नयी अब  चलानी  पड़ेगी।


हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
वरिष्ठ प्रबंधक,सेवानिवृत्त,
पंजाब नेशनल बैंक,
मण्डल कार्यालय, बिरहाना रोड, कानपुर

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