ग़ज़ल
कोई ज़िन्दा रहे न मर जाये।
नब्ज़ जो एक पल ठहर जाये।
दूर तक जब नहीं नज़र जाये।
है ये बेहतर बशर ठहर जाये।
हर तरफ दिख रही वबा फैली,
जिस तरफभी जिधर नज़र जाये।
पार दुश्मन करे नहीं सरहद,
सर ये बाक़ी रहे कि सर जाये।
रब का मेरे अगर करम हो तो,
बात बिगड़ी हर इक सँवर जाये।
फिर न रहता अदब किसी का भी,
आँख से शर्म जब उतर जाये।
हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
वरिष्ठ प्रबन्धक ,सेवानिवृत,
पंजाब नेशनल बैंक,
मण्डल कार्यालय,कानपुर
No comments:
Post a Comment