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लघुकथा रोटी का कर्ज laghukatha _Roti Ka Karj लेखक संदीप कुमार

 लघु कथा  (रोटी का कर्ज )                   

    बात कुछ दिनो पूर्व की है, मेरे मुहल्ले में तीन कुत्ते के पिल्ले ने जन्म लिया। वे अक्सर खेलते लड़ते मेरे घर के सामने आ धमकते थे।       


                        

     अचानक दो पिल्ले के बिछड़ने के बाद वह अकेला पड़ गया था और हमेशा उदास रहने लगा था। अपने साथियों के साथ उछल कूद करने वाले इस पिल्ले की उदासी मुझसे देखी नहीं जाने लगी, और मै कभी -कभी उसके साथ समय देने लगा, मानो मुझे थोड़ा लगाव हो गया था । उसे मैंने टोमी नाम भी दे दिया था।                                            अहले सुबह जब मै मॉर्निंग वॉक के लिये निकलता तो घर की बची रोटियाँ उसे आवाज लगाकर दे देता। और वह फुर्ती से खा कर मेरी और देखने लगताऔर प्यार से मै उसके सर पर हाथ फेर देता, अब यह मेरा दिनचर्या- सा हो गया था।                  

कुछ महीनों के बाद मेरे घर में एक छोटा सा प्रोग्राम था, कुछ मेहमान लोग आये थी। एक सुबह उनके बच्चे बाहर खेल रहे थे, तभी एक जहरीले सर्प  बच्चों के पीछे-पीछे रेंगते हुए आ रहा था, बच्चे इससे अंजान अपने खेल में व्यस्त थे। 

तभी टोमी की नजर उस सर्प पर पड़ी और बिजली की भाँति वह उस पर टूट पड़ा। अचानक हमले से सर्प तो लहूलुहान हो गया लेकिन उसे डस लिया। 

आवाज और शोर गुल सुनकर जब में बाहर निकला, तबतक देर हो चूकी थी। रोटी का कर्ज अदा कर टोमी निढाल हो चुका था........! 

                                लेखक -  संदीप कुमार                   

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