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बंसती हवा

       बासंती हवा


आज दामिनी संग आई बासंती हवा
बालों को सहलाकर मेरे हाथों को छुआ !

पुछा  तुम  क्यों  इतने  उदास  हो 
आओ झुलाती हूँ झूला थोड़ा मेरे पास हो !

कहा मैने दिल मे कुछ खटक गया है
जैसे सांसो मे बसकर कुछ अटक गया है !

न उसका पता है न कोई पाती है
मौसम की रूबाई मे याद उसकी आती है !

कौन है वो जरा हम भी तो जाने
मालूम नही हमे वो खुद आऐ खुद को बताने !

बस   और नही  लिख  पाऊंगा मै
उसके  बिना  जिन्दा  नही  रह  पाऊंगा  मै  !

    "अशोक योगी शास्त्री "
कालबा हाऊस नारनौल हरियाणा

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