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घरवाली (पत्नी) कैसी होनी चाहिए।

ऐसी मेरी घरवाली हो

प्यार हो उसका शहद जैसा 
हो वो सुंदरता का गहना 
प्यार वो मुझसे करती हो 
कहने मे झिझकती हो 
ऐसी मेरी घरवाली हो।

आँखों मे हो ख़ंजर उसके 
रोज मुझको घायल करती वो 
हॉठ हो उसके अमृत के प्याले 
हर रोज जाम पिलाती वो 
देखने में भोली-भाली हो
ऐसी मेरी घरवाली हो।

नशा हो उसके लबो मे इतना 
पीकर मदहोश हो जाऊ मै 
ज़ुल्फ़ हो उसके काले बादल
लेटा रहूँ मै उसके छाये मे 
कोयल से मीठी बोली हो 
ऐसी मेरी घरवाली हो।

तेज हो मुखमंडल पे ऐसे 
पूर्णिमा का चाँद हो जैसे 
बदन हो उसके मख़मल जैसे 
ग़ुलाब जैसी वो कोमल हो 
सरसों सी कमरिया हो
ऐसी मेरी घरवाली हो।

दिल हो उसका मोम जैसा 
मासूम हो उसका चेहरा 
हिरणी जैसी चलती हो 
कभी देशी, कभी -विलायती 
मर्यादा मे फ़ैशन करती हो 
ऐसी मेरी घरवाली हो।

बड़ो का आदर करती हो 
खिलखिलाकर हसती हो 
पैरो मे पायल पहनती हो
हाथो मे कंगना खनकाती हो 
नाशिका मे चमकती मोती हो
ऐसी मेरी घरवाली हो।

बाहें हो उसकी फ़ुलों की माला 
जहाँ से निराली अदाएँ हो
धन-दौलत की ना ख़्वाहिश हो 
जितनी मेरी आय हो 
उसमे ख़ुश हो जाये वो 
ऐसी मेरी घरवाली हो।

आसमां मे ना उड़ने वाली हो 
हक़ीक़त मे जीने वाली हो 
घर की बात घर मे रखने वाली हो 
एजुकेटेट वो कहलाती हो 
आज की आधुनिक नारी हो 
ऐसी मेरी घरवाली हो।

                   कवि मस्ताना

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