कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

रामराज की नींद

।कहानी।

                            ।। रामराज की नींद।।


रामराज उर्फ रमई ऐसे शख्सियत का नाम है जिनका नाम सुनते ही छोटे - बड़े - बूढ़े - जवानों की हंसी रुकने का नाम ही नहीं लेती। वैसे रामराज छः भाई थे  सब के सब परम शूरवीर, परन्तु रामराज सबसे डरपोक अपनी बात सदा ऊपर करने वाले परम मूढ़ व्यक्ति थे। पूरे पौहद मे इन छः भाईयों हुब्बा, छब्बा, रामराज, श्याम लाल, मुन्नी लाल, हीरा को कौन नहीं जानता। रामराज सदा कहते भी थे - "गाँव वालों हमारे सामने कौन टिक सकता है, हम छः भाई हैं यदि सौ-सौ वर्ष जीवित रहें तो छः सौ वर्ष जीवित रहेंगे भला गाँव मे तब तक कौन रहेगा। इस पर सभी लोग हँस देते थे। रामराज की गणित सीधी और बेजोड़ थी।
      रामराज का शरीर मांसल हट्टा-कट्टा था। मुख पर चेचक के दाग पड़े हुए थे तथा उसी चेचक से ही उनकी बांयी आंख चली गयी थी। उस आंख नाम पर केवल गड्ढा ही बचा था। नाक का नेटा बैसाख मे भी नहीं सूखता था। दाढ़ी नाई उनका छठे छमासे हिम्मत करके बना देता था। किसी भाई की शादी नहीँ हुई थी न होने की सम्भावना ही थी क्योंकि सबसे छोटे भाई की उम्र पचासवां बसंत देख चुका था। भाईयों मे मालिक मुन्नी लाल थे। वही घर मे कुछ समझदार व्यक्ति थे। वह  बाहर रहते थे तथा जब आते थे तो घर में चहल - पहल बढ़ जाती थी। रामराज के खुशी का ठिकाना नहीं रहता क्योंकि वो बुढ़ापे मे भी सबकी मार खते रहते थे।

  रामराज का काम खाना समय से खा लेना तथा हर दरवाजे पर घूम - घूम कचहरी करना बारहों मास का था।
शाम को खाना खाकर सो जाते थे तथा चाहे घर पर जो भी हो। यदि कोई पूछता तो  कहते - छः महीने बीत गये आंख पर आँख नहीँ लगी पर सब उल्टा था। यदि कोई काम आ पड़ता तो उनको दुर्गा सवार हो जाती जिससे काम न करना पड़े और वहां से विचित्र आवाज बोलते भाग निकलते।इस तरह से उनका जीवन चौथे पड़ाव के पावदान पर पैर रख चुका था। भाई लोग भी एबायड करते थे कि यह तो काम चोर है।

   उन दिनों आज की तरह न उन्नतिशील बीज ही थे न ही सिंचाई का साधन ही था। कृषि पूर्ण - रूपेण दैव पर आधारित थी। खेतों मे असिंचित फसल ही बोयी जाती थी जिनमें ज्वार, बाजरा, मकई प्रमुख था। यहाँ के लोग मकई की खेती आज  भी करते आये  है। इस साल पूरे गाँव मे रामराज की मकई सबसे उम्दा थी। लोंगों मे बड़ी  उत्सुकता थी कि कटने के समय आने वाला है। धीरे- धीरे मकई मे दाना पड़ने ही वाले थे सांचा बैठ गया था। सारे पक्षी इसी मे दाना खाने के के लिए होड़ लगाये रहते थे।

            भादों का महीना था। आकाश मे काले-काले बादल छाये हुए थे। रिमझिम - रिमझिम फुहारें पड़ रही थी। रामराज के घर पर कुछ मेहमान आये हुए थे। भुट्टे भुने जा रहे थे  लोग नमक लगा-लगाकर खाये जा रहे थे।
कोई कहता है बडा़ ही मीठा मकई है। कोई कहता बहुत बड़ा - बड़ा है।  आज मकई के खेत पर जाने वाला कोई दिखाई न दे रहा है। इधर साम  हो चली है। श्यामलाल ने पूछा रामराज जब छः महीने हो गये नींद तुम्हे आती ही नहीं। रामराज ने कहा - क्या मै झूठ कहता हूँ। सारे रिश्तेदार रामराज की तरफ देख रहे थे कि यह व्यक्ति छः महीनों से सोया नहीं है। एक ने  पूछा - बाबा नींद नही आती। रामराज ने फौरन वही बात दुहराएं -" छः महीने हो गये आंख पर आंख नहीं लगी है।" अब सभी लोग भोजन कर लिए तथा रामराज भी खाना खा लिए, श्यामलाल ने कहा - जब तुम्हें नींद नहीं आती तो आज से रात मे मकई रखाने तुम्हें ही जाना है। रामराज ने कहा-ठीक है यहाँ भी रात जागकर बीतती है वहां भी जागकर बीतेगी। अपना कम्बल कंधे पर रखे और माचा पर सोने के लिए चल दिये। माचा चार बांस आठ-आठ हाथ के टुकड़े काटकर बनाये जाते थे। दो बांस एक तरफ तथा दो बांस सीधे उसके सामने कुछ दूरी पर जमीन मे गाड़ दिये जाते थे। दोनों बासों का मुख ऊपर आपस मे बांध दिया जाता था। उन चारों बांसों के बीच मे पलंग रस्सी से बांधा जाता था। बांस के ऊपर बारिश का पानी रोकने के लिए छप्पर डाल दिया जाता था। उसी पर बैठकर या सोकर मकई की रखवाली होती थी। "माचा "इसी को कहा जाता है।

      भादो की अंधियारी रात हाथ पसारने पर दिखाई कुछ नहीं दे रहा था। रामराज माचा पर पहुंचने वाले ही थे कि बारिश प्रारम्भ हो गयी। दौड़कर वो माचे पर चढ़ गये तथा सियारों को भगाने के लिए लुहे, लुहे, लुहे जोर - जोर से बोलने लगे। आसपास खेत वालों को पता चल गया कि आज रामराज खेत रखाने आये है। हम लोंगो का बानक लह जायेगा। सब चुप होकर रामराज के सोने का समय इंतजार कर रहे थे कि रामराज की नाक बोलने लगी रामराज आज कुम्भ कर्ण की तरह खर्राटे भर रहे थे कारण भी था सारा दिन उमस था इस समय बारिश की हल्की फुहार के साथ हवा चल रही थी जो अकारण नींद ला रही थी। इसमें रामराज का दोष ही क्या था। उस इलाके जितने चोर थे सब के सब हँसिया लेकर आये और माचे के पास से तकरीबन बीस बोझ मकई काटकर घर पहुंचा दिये। रामराज का खर्राटा और तेज होते चला जा रहा था। समय सुबह के चार बजने वाले थे चोरों ने एक प्रयोग और किया। चार लोग लाठी लेकर माचे के नीचे चारों कोनों पर पलंगें के नीचे लाठी से टेक
 लगा लिए तथा दो आदमी ऊपर चढ़कर बंधी रस्सियों को काट दिये । अब पलंग तथा रामराज लाठी के सहारे पर रुके थे। सबों ने धीरे - धीरे लाठी नीचे की तरफ आने दिये उसके बाद पलंग हाथ से पकड़ने लायक हो गया और पलंग को धीरे से जमीन पर रख दिया परन्तु रामराज का खर्राटा अभी भी बंद नही हुआ। अब क्या था चोरों ने पलंग से नीचे जमीन पर रामराज को लिटा दिया। बिस्तर व पलंग लेकर चोर चलता बने।

             इधर सबेरा हो गया। श्यामलाल रिश्तेदारों को लेकर खेत की तरफ आये तो उनके होश उड़ गये। बीसों बोझ मकई कटने से खेत उजाड़ बन गया था। रामराज, रामराज कहकर चिल्लाने लगे पर रामराज के पूरे चेहरे तथा कपड़े पर गिली मिट्टी पुती थी जैसे कोई भैंसा कीचड़ मे लोटा हो। जब जोर से रामराज बोलते हुए श्यामलाल माचा के पास आये तो उनके क्रोध का ठिकाना न रहा। बोले - रामरजवा कितना सोता है रे तेरा सत्यानाश हो तब रामराज बोले - क्या हल्ला मचा रक्खा है पर अब भी रामराज आंख कहां खोलने वाले है आंख बंद किये हुए वही पुरानी बात दुहराते हैं -" छः महीने से कहां आंख पर आंख लगी है।" श्यामलाल के क्रोध का ठिकाना न रहा और चिल्ला कर एक लात रामराज के पीठ पर जड़ दिए। अब तो रामराज की नींद बहुत दूर जा चुकी थी तथा अपने को जमीन पर पाकर ऊपर देखे तो न पलंग था न बिस्तर और मकई भी दूर तक शेष नहीं रह गयी थी। तब रामराज बोले आज छः महीने पर कुछ क्षण के लिए नींद आ गयी थी। श्यामलाल सर पे हाथ रख हतप्रभ से होकर बैठ गये तथा रामराज के तरफ क्रोध एवं अफसोस भरे निगाहों से देख रहे थे।

स्व लिखत                      ।। कविरंग ।।
                      पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)

No comments:

Post a Comment