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इंसान तो हैं... Insaan to h

                        इंसान तो है 

कॉलबेल की आवाज सुन कर रमा ने दरवाजा खोला | भरी दोपहरिया ... उमस भरी गर्मी में बाहर दरवाजे पर खड़ी सिन्हा भाभी !

"भाभी आप ! अंदर आइये ।"

“ साॅरी, तुमसे एक जरूरी काम है , इसलिए अभी .....”

“ अररे..भाभी, हमलोग पड़ोसी हैं, फिर संकोच कैसा ! बताइए क्या काम है ?”

" आज रात बहुत सारे रिश्तेदार मेरे घर आ रहे हैं | उन लोगों को कल वैष्णोदेवी जाना है | मात्र एक दिन वे लोगो यहाँ रुकेंगे | रमा, प्लीज़...अपनी कामवाली को आज शाम मेरे घर भेज देना |वह जितना बोलेगी, उतने पैसे दे दूँगी |"

"मगर भाभी, आपके यहाँ तो पहले से ही कामवाली लगी है ना?" रमा ने जिज्ञासावश पूछ लिया |

"क्या कहूँ ! मेरी कामवाली बहुत नखरे दिखाती थी, आने के साथ ही उसे कभी पेट में दर्द, कभी चक्कर, तो कभी कुछ और, हजार बहाने बनाती थी ! मनमाना पगार दो, उस पर से इतने नखरे ! कामवाली न हुई, बड़े ओहदे वाली हो गई । मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ, सो मैंने उसे सुना दिया कि 'जा पहले सेहत दुरुस्त कर, फिर काम करने आना' | "

सुनकर, रमा मुस्कुरा दी |

"पर तुम्हारी कामवाली बहुत अच्छी है, कभी नागा नहीं करती है | सच, बहुत भाग्यशाली हो तुम। " भाभी ने कहा |

“ हाँ, मेरी कामवाली वाकई अच्छी है | लेकिन , इधर कुछ दिनों से उसके दाहिने हाथ की नसें खिंच गई. न बर्तन धो पाती है और न ही झाड़ू-पोछा !” रमा ने आहिस्ता से कहा ।

“ लेकिन आती तो रोजाना ही है |” सिन्हा भाभी रमा की आँखों में झांकते हुए बोली ।

“ हाँ! परसों से ही उसके हाथ में तेज दर्द था | मुझसे देखा नहीं गया, सो उसे डॉक्टर के पास ले गयी | डॉक्टर ने कुछ गोलियाँ साथ में एक तेल -- मालिश के लिए दिया ।" रमा ने गंभीरता से कहा |

"तो फिर आकर करती क्या है? पगार न कट जाये इसलिए ?" सिन्हा भाभी ने व्यंग्य भरी मुस्कान लिए पूछा ।

"नहीं! उसके घर में बूढ़े, विकलांग पिता के अलावा और कोई नहीं है, इसलिए मैं उसे अपने पास बुला लेती हूँ । हाथ में सही से मालिश हो जाती है और खाना भी साथ लगा देती हूँ ।"

"ओह! तो आजकल कामवाली की सेवा हो रही है!" भाभी ने मुस्कुराते हुए दूसरा व्यंग्य वाण छोड़ा |

"यही समझ लीजीये | बेचारी! इतने से गदगद हो जाती है। आज वो भावुक होकर बोली कि 'भगवान आपकी सुहाग को सलामत रखे, मुझ गरीब को मालिश करने में तनिक भी घृणा नहीं हुई आपको' !" कहते हुए रमा की आँखें डबडबा गई ।

“लेकिन, रमा तुमने ये सही नहीं किया | ये छोटे लोग इसीसे सिर पर चढ़ जाते है | अरे! वो हमारी माँ-सास थोड़े ही है | उसे पगार तो मिलता है... फिर ये सब ? “

"माना वो रिश्तेदार नहीं लगती, आखिर इंसान तो है | जब ठीक हो जाएगी, फिर उसी से सुख भी मिलेगा न | झाड़ू-पोंछा, बर्तन, जरूरत पड़ने पर कपड़े धोना और कभी मेहमान आये तो रसोई में मदद, एक भरोसे का रिश्ता बन गया है उससे |"

भाभी अजीब निगाहों से उसे घूरने लगी |

रमा अपने धुन में बोलती गयी , "बचपन में अक्सर सुना करती थी कि जो हम दूसरों को देते हैं, ईश्वर दुगुनी करके वही हमें वापस ....."

अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि सिन्हा भाभी तेज कदमों से बाहर निकल गयीं ।

रमा , खामोश उन्हें देखती रही, उसकी नजरों में अभी भी मानवता का पलड़ा व्यवसायिकता के पलड़े से कहीं अधिक भारी.... दिख रहा था ।

रचनाकार
लेखिका मिन्नी मिश्रा
 पटना (बिहार )

मेरा परिचय ---

श्री मति मिन्नी मिश्रा , गृहणी
शिक्षा ---  स्नातकोत्तर ( अंग्रेजी )   LNMU ( Bihar)   
 
विधा-स्वतंत्र लेखन
जन्म तिथि- वर्ष १९६५
जन्म स्थान —दरभंगा (बिहार )

प्रकाशित रचनाएं-
दृष्टि, लघुत्तम –महत्तम, किस्सा कोतहा ,लघुकथा कलश ,  भाषा-सहोदरी, अट्टहास,घरौंदा ,नये पल्लव,चंद्रहास कहानियाँ,चुनिंदा लघुकथाएँ, परमान टाइम्स ,नई रोशनी-नई पहल ,कविता-कहानी विशेषांक , मेरी रचना , साहित्यनामा , समय संकेत , साहित्य कलश ,कलमकार मंच और शीर्षक साहत्य परिषद,संगिनी, मधुरिमा, सुरभि,  लोकचिंतन , समाज्ञा, हिन्दुस्तान, सलाम दुनिया , ज्ञान सवेरा और भी कई पेपर व पत्रिका में |

सम्मान---
लघुकथा लेखन में ... मुझे  कलमकार मंच से  ,शीर्षक साहित्य से , भाषा सहोदरी से , नये पल्लव से और प्रजातंत्र का स्तम्भ से सम्मानित किया जा चुका  है  |

     मेरा  पता-- 
 shivmatri apartment,
    Road  number---3,   
maheshnagar, Patna                     
  Pin--- 800024
email--mishraminni0@gmail.com

1 comment:

  1. मेरी लघुकथा को स्थान देने के लिए आपका सह्रदय आभार और धन्यवाद ।
    सर, मेरे नाम के नीचे आपने कवयित्री लिखा है,पर मैं कविता बहुत कम लिखती हूँ ,कथा अधिक।

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