2)आद0 अमितारवि दुबे द्वारा लिखित आज का प्रसंग महाभारत के अंश से
इंसान जब पौराणिक इतिहास या धर्म अध्यातम की बातें पढता है तो कुछ बातें ह्र्दयतल को छू जाती हैं। जो प्रेरक और संग्रहणीय होती हैं।
ऐसा ही एक प्रसंग द्रोपदी के स्वयंबर में जाते वक्त श्रीकृष्ण ने अर्जुन को। समझाते हुए कहा कि हे पार्थ,तराजू पर पैर सम्भलकर रखना।संतुलन बराबर रखना लक्ष्य मछली की आँख पर ही केंद्रित हो"इसका ध्यान रखना, तो अर्जुन ने कहा"हे प्रभु" सब कुछ अगर मुझे ही करना है तो फिर आप क्या करोगे??
वासुदेव तब हँसकर बोले जो आपसे नही होगा वह मैं करूँगा,पार्थ ने कहा ऐसा क्या है जो मैं नही कर सकता?
वासुदेव पुनः हँसे और बोले जिस अस्थिर, विचलित हिलते हुए पानी मे,,तुम निशाना साधोगे," उस पानी को "मैं"स्थिर रखूँगा!!
कहने का तात्पर्य यह है कि आप
चाहे कितने ही बुद्धिमान क्यूँ ना हो, और निपुण क्यों ना हो कितने ही विवेकपूर्ण महान क्यूँ ना हो,लेकिन आप स्वयं हरेक परिस्थितियों के ऊपर नियंत्रण नही रख सकते"आप केवल प्रयास कर सकते हो,लेकिन उसकी भी एक सीमा है और उस सीमा से आगे की बागडोर जो सम्हालता है,उसीका नाम भगवान है।"
प्रसंग की प्रेरणा यह है कि हम केवल माध्यम है प्रयास करना हमारा नैतिक कर्तव्य और धर्म है,किन्तु सफलत की डोर उस ईश्वरीय सत्ता के हाथों हैं। जैसे हम जीवन जीते हैं साँसे चलती है,किन्तु साँसों की डोर भी परमसत्ता के हाथ है। उसी तरह कर्म करते रहना सजग रहना हमारा जीवन धर्म है परिणाम और सफलता अप्रत्यक्ष रूप से भगवान के हाथों है।
इसलिये अर्जुन की भूमिका और कृष्ण जी की सत्ता कीरूपी शक्ति से हम सभी बंधे हुए हैं।
इसलिये कहा जाता है सबहिं नचावत राम गोंसाई" ।
अमिता,रवि,दूबे
छत्तीसगढ़
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