सत्य - असत्य
दुबला होता जा रहा है सत्य इतनाहो रहा है मोटा असत्य उतना।
असत्य की भयंकर हुंकार से
सत्य छिपता जा रहा है।।
सत्य भूखों मर रहा है
असत्य खा - खा मर रहा।
करता परिश्रम सत्य सब
असत्य फूल - फल रहा।।
सत्य सर के बल खड़ा
असत्य तोषक पर पड़ा।
सत्य तन - खीन - हीन
असत्य तन भारी बड़ा।।
असत्य रग-रग में समाया
सत्य का न कोई थाह पाया।
विचार मन में सत्य का होते
असत्य चेचा फौरन दबाया।।
बस्त्र को सतियां तरसती
स्वर्ण से कुलटा डकरती।
वो एक पति ना रख पा रहीं
कोई लक्ष पुरुषों को पद पे झुका रहीं।।
सत्य की जीत होती अंत में
गणना होती अरिहंत में।
केतु उसका नभ में फहरता
दिखता ना असत्य दिगंत में।।
स्वरचित मौलिक ।।कविरंग ।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर@ उ0प्र0)
सभी सहृदयों को विजय दशमी की शुभकामनाएं
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