ग़ज़ल
दिलों में समाना अगर चाहते हो।
सियासत में आना अगर चाहते हो।
कभीकल पेटालो नहीं काम हरगिज़,
सदा मुस्कुराना अगर चाहते हो।
ये मुमकिन बहुत है मिटे भाईचारा,
सखा आज़माना अगर चाहते हो।
हिफाज़त करो जानदेकर भीइसकी,
वतन जगमगाना अगर चाहते हो।
तरफदार बनिये नहीं ग़लतियों के,
शिकायत मिटाना अगर चाहते हो।
गुलों को मयस्सर करो रंग खूं का,
चमन को सजाना अगर चाहते हो।
बुराई का बदला भलाई से देना,
किसी को हराना अगर चाहते हो।
हमीद कानपुरी
अब्दुल हमीद इदरीसी,
वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत,
पंजाब नेशनल बैंक,
मण्डल कार्यालय, कानपुर-208001
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