यादों का ठीकरा
तेरे यादों का ठीकरा कहाँ फोड़ दूं ।कहता है जी जीवन जवानी जहाँ छोड़ दूं।।
वो तुमसे छुप - छुपकर मिलना
रोमहर्षण और अन्तः का खिलना
कुम्भ सदृश कुच पर कर फिरते
मेरे जी का बारम्बार मिचलना
फिर लाके मिस्री कहां घोल दूं।। तेरे यादों - - - -
स्पर्श हो जाता तन आते - जाते
रोमांचित हो उठता हँसते-हँसाते
भरता नहीं जी तेरे पास बैठने से
ठहर जाता समय हम ना उक्ताते
फिर वही हाई वोल्टेज कहाँ जोड़ दूं।। तेरे यादों - - - - - -
कदली सदृश उरुओओं का मृदु स्पर्श
रह-रह कर होता तन में रोमहर्ष
वदन में छा जाती स्फुल्लिंग सी
कल का ही मिलना लगते बीते वर्ष
जीवन की धारा को कहां मोड़ दूं।। तेरे यादों - - - - -
युक्ति लगाते पुनः मिलने - मिलाने की
फिर वही नोक-झोंक शीत युद्ध लाने की
तुम तो ठहरी एक नम्बर की बेवफा
तुम्हें चाहत नहीं हमे जिलाने की
सारे समाज के बंधन को कहां तोड़ दूं।। तेरे यादों - - -
प्रथम प्रणय में मिली फुहार सी
दूजे में तूं हो गयी बौछार सी
इन मिलनों से आज भी मन अतृप्त
अब मेरा मिलना हो गयी बुखार सी
तन जरजर पुनः वह कहाँ शोर दूं।। तेरे यादों - - - -
वासनात्मकता का ज्वर उतर सा गया
मिलने - मिलाने से जी भर ही गया
झकझोर रही तृष्णा रोम - रोम मेरा
वो जवानी का तन सड़ ही गया
डूब रहे सूरज को कहां भोर दूं।। तेरे यादों - - - -
स्वर्ग की खोज में नर्क आ गया
तरुण तन में कहाँ से फर्क आ गया
चाहकर भी न हुआ मिलन तेरा-मेरा
तेरे मन में पग - पग कैसे तर्क आ गया
टूटे पतंग को कहां से नव डोर दूं।। तेरे यादों - - - - -
स्वरचित मौलिक ।। कविरंग ।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)
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