ग़ज़ल
अब हक़ीक़त से नज़र हटने लगी है
ख़्वाब की चिड़िया बहुत उड़ने लगी है
ख़्वाब की चिड़िया बहुत उड़ने लगी है
इस क़दर निस्बत कभी मैंने न की थी
हाथ से हर चीज़ क्यों छिनने लगी है
हाथ से हर चीज़ क्यों छिनने लगी है
रात के दूजे पहर में जानेजाना
चाँदनी भी शूल सी चुभने लगी है
चाँदनी भी शूल सी चुभने लगी है
आबलों की देख कर हिम्मत सितमगर
राह सीधी राह पर चलने लगी है
राह सीधी राह पर चलने लगी है
जब दिलों से मिट गईं सब दूरियाँ तो
प्रेम की गँगा सहज बहने लगी है
प्रेम की गँगा सहज बहने लगी है
रचनाकार
बलजीत सिंह बेनाम
सम्प्रति:संगीत अध्यापक
उपलब्धियाँ:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ
सम्पर्क सूत्र:103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
हाँसी:125033
सम्प्रति:संगीत अध्यापक
उपलब्धियाँ:विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित
आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ
सम्पर्क सूत्र:103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी
हाँसी:125033
No comments:
Post a Comment