कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

हाथों में भिख का कटोरा क्यों? Hatho me bhikh ka katora kro?

विधा:- कविता

हाथों में भिख का कटोरा क्यों?


कितनी मासूम सी है वो,
व्यथित हो उठता है मेरा हृदय उसे देख कर... 

क्या गलती है उस नन्ही सी मासूम बच्ची की, 
जिसे मात्र छः वर्षों की अल्प आयु में भेज दिया गया कटोरा पकड़ा कर... 

साथ में उसकी छोटी बहन, 
घूमती है जिसे वो अपनी पीठ पर ले कर.... 

कभी रेलवे स्टेशन तो कभी चौराहे पर नज़र आती है वो, 
कहती फिरती है कुछ दे दो साहब मुझ पर दया कर.... 

शायद मजबूर होगी वो ऐसा करने को, 
शायद अपने परिवार का भरण पोषण करती होगी ऐसा कर.... 

मैंने पूछा बाबू तूम कुछ खायी तो हो ना, 
चली गई वो चुपचाप मेरे चेहरे को घूर कर.... 

मानो कहना चाहती हो मुझसे कि, 
मैंने भी मजाक उड़ाया उसका हाल पूछ कर... 

उसकी वो डर भरी नज़रे मेरे मन को यूँ कचोट गई, 
घर आ कर बहुत रोई माँ के गले लग कर... 

सुकून मिली थोड़ी सी मुझे उस वक्त, 
जब खिलाया मैंने आज उन दोनों को मेरे साथ बिठा कर.... 

जी करता है ले आऊँ उन्हें अपने घर, 
और करूँ पालन उन दोनों की माँ बन कर... 

फिर सोचती हूँ क्या वो मुझ संग आएगी भी, 
शायद कोई इंतजार करता होगा इसके घर पर... 

कैसा समाज है हमारा कैसा ये आडम्बर है, 
किसी के बदन पर वस्त्र नहीं और कोई घूमता है महंगी गाड़ियों पर.... 

क्या हमें इनकी मदद नहीं करनी चाहिए, 
क्या सज़ा मिलेगी इन बच्चों को संभालने पर... 

आते हो आप वस्त्र चढ़ा मंदिर और मकबरे पर, 
करो कल्याण इन बच्चों का उन वस्त्रों का दान इन्हें दे कर... 

कभी थोड़ी वफ़ाएँ इंसानियत से भी निभाया करो, 
ऐ युवा पीढ़ी हमारी 
थोड़ी मोहब्बत इन बच्चों पर भी लुटाया करो... 

कैसे ये लोकतंत्र हमारा कैसी ये कूटनीति है, 
कुछ लोग बैठे होते है बस सफ़ेद वस्त्र धारण कर.... 

कहने को बस कह देते है गरीबी मुक्त भारत बनाएंगे, 
अगर करनी है सच में ऐसा तो देखें कभी आम सड़को पर आ कर.... 

महसूस करे इन बेकसूर बच्चों की जिन्दगानी, 
संभाल ले भविष्य इन बच्चों को संभाल कर... 

भारत हमारा समृद्ध तब हीं बन पाएगा, 
जब कटोरा हटा कर उन कोमल हाथो में पुस्तक पकड़ाया जाएगा.... 

काश की कोई बच्चा यूँ भूखा ना घूमता, 
काश की किसी के हाथों में भिख का कटोरा ना होता.... ।।

स्वाति सिन्हा 

1 comment: