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गजरा लगा लगाते हैं

संवरने को नथ पाजेब छल्ला लगाते हैं,*
 मुफलिसी में वो फूलों का गजरा लगा लगाते हैं।


*दरख़्त काट गमले में लोग पौधा लगाते हैं,*
 सूखे पेड़ पर परिंदे कब सजरा लगाते हैं।


*गुलाब, सन्दल, इत्र नहीं मयस्सर किसी को,*
 दिखावे में लोग जाने क्या क्या लगाते हैं।


*फरेबी लोग तो अपना रुतबा दिखा रहे हैं,*
मक्कार झूठे अब चेहरे पे चेहरा लगाते हैं।


*बलाओं से रहे महफुज चराग-ए- चमन,*
 हम सब बच्चे को काला टीका लगाते हैं।


*बस्तियां जला के बैठे है वो इत्मीनान से,*
हम तो चौखट पे आम का पत्ता लगाते हैं।

*शाहरुख मोईन*
अररिया बिहार

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