निर्भया
बहुत बार रोया गया
बहुत बार खोया गया
हर बार यही जुमला सुनते रहे
मुजरिम सज़ा से बचता रहा
कभी कपड़ों का रोना सुना गया
कभी सपनो को रोज़ धुना गया
मार कर मन की हर बात को
संस्कार की दीवार में चुना गया
कानून हिफाजत के लिए बनाया गया
तमाम दलीलों को सामने लाया गया
भेदभाव न हो सके कानून की देवी से
तो आंखों पर पट्टी को बाँधा गया
ताज़्ज़ुब है इतना सब हो जाने पर भी
निर्भया तेरे दंश को अंश भर भी न
किसी से हिलाया गया।।
©ज्योत्सनागुप्ता
लखीमपुर खीरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
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