प्रेम की रचना
आंख लड़ी थी उससे मेरी
थी वह भोली सी प्यारी - प्यारी
मधुर-मधुर सी आवाज थी उसकी
नजर मिली थी उसकी चोरी - चोरी
आंख लड़ी थी उससे मेरी ।।
नहीं समझती थी वह प्यार - प्रेम को
थी वह बेचारी दुख की मारी
अनजाने में आंख मिली थी
उसे देखकर मेरी आंख खुली थी
आंख लड़ी थी उससे मेरी ।।
उसी - समय बरसात आ गई
तूफान आया था गुस्से में भारी
डर लगा था मेरे को भारी
पास आयी वो बेचारी भोली सी लड़की
उसने मुझको गले लगाया
बोली प्यार किया केसे जाता है
ये तूफानों ने हमें सिखाया
आंख लड़ी थी उससे मेरी ।।
इतिहास का पाठ पढाया
राम - कृष्ण लीला का ज्ञान कराया
मन में मेरे उसने प्रेम जगाया
बोली धीरे से मेरे को
एक दूसरे का साथ निभाओ
आओ तुम मेरे प्रिय बन जाओ
आंख लड़ी थी उससे मेरी ।।
रोग लगा जब प्रेम का मुझे
सारे जग में गुम के देखा
दवा नहीं थी उसकी और कही भी
मिला नहीं उपचार कही भी
आंख लड़ी थी उससे मेरी ।।
बटक गया था में भी भारी
ढूंढ रहा था वेद और ब्रह्मचारी
जाग गई थी किस्मत मेरी
मिला जब मुझे वेद से भी भारी
कहा वेद जी ने मेरे को
असर नहीं हे तुम पर कोई दवा का
लगा रोग हे तुम पर बहुत ही भारी
आंख लड़ी थी उससे मेरी ।।
आंख नहीं मिचती थी मेरी
रोग लगा था मुजको भारी
बजी हुई थी रात की बारह
आंख मिची थी जोरी - जोरी
सपना आया जोर का मुझको
जिससे आंख लड़ी थी मेरी
बोली गुस्से से होकर भारी मुझसे
दवा तुमारी में हूं ब्रह्मचारी
आंख लड़ी थी उससे मेरी ।।
Op Merotha hadoti Kavi
छबड़ा जिला बारां ( राज )
No comments:
Post a Comment