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कविता मां maa par kavita

  शीर्षक :-  मां


यूं तो शब्दों में बयां नहीं
मेरे अंतरात्मा की पहचान हो ।
मैं जो हूं ,जैसा हूं ,
मां  मेरे अंदर तुं मेरी जान हो ।।

क्या नहीं सहा है आज तक तूने मेरे लिए,
क्या नहीं कहा है आज तक तूने मेरे लिए।
पर आपकी वो कड़वी बातें,
मेरे जिंदगी की मीठी पहचान हो।।

मन करता है लेटा रहूं तेरी गोद में,
कह दूं वो सारी बातें जो सोचता हूं वियोग में ।
तेरे आंचल से लिपट जाऊं,
जब पाऊं खुद को असहनिया रोग में ।।

मां तू मेरी सफलता ,
तू मेरा अभिमान हो।
यूं तो शब्दों में बयां नहीं,
पर मेरे अंदर मां ,तू मेरी जान हो।।

नाम - निर्मल कुमार महतो

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