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राजनीति में बढ़ती महत्वाकांक्षा गिरती नैतिकता (Rajniti me badhati mahatvakanksha girati naitikata

 राजनीति में बढ़ती महत्वाकांक्षा गिरती नैतिकता


सभी को अमीर होने का एक जुनून चढ़ा है सभी को कुर्सी पर ताबीज होना है और फिर बंदरबांट का खेल खेलना है।यह आज की राजनीति और उनके चरित्र हैं।

ताजा उदाहरण हम सबने लोजपा का देखा।जहां नैतिकता और शिष्टाचार का पतन चरम सीमा पर था।यह कैसी ओछी परिदृश्य भारतीय राजनीति में उभर रही है। जहां एक पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष अगर मिलने जाय तो दरवाजा न खुले । एक समय वह था जब राजनीति के घोर विरोधी भी जब कहीं मिलते थे तो दुआ सलाम और कुशल क्षेम आदर भाव के साथ गले मिलकर पूछते थे। देश और क्षेत्रीय समस्याओं के निराकरण के उपायों पर बात करते थे। हर छोटी से छोटी समस्या का हल तलाशा जाता था। तब कहीं जाकर हमारा लोकतंत्र प्रगाढ़ और हम इतने विकासशील हुए हैं।आज का परिदृश्य भिन्न है और मानसिकता पृथक सब अपने आप में सुपर बाॅस है। सबकी सिर्फ महत्वाकांक्षा
 है । जनता की आकांक्षा या उनकी नैतिकता कहीं बची ही नहीं।जो आगे बढाता है यह सिर्फ उसे ही तबाह करता है।

वैसे यह चूहे बिल्ली का खेल तो पहले भी होता था लेकिन इस कदर हावी न था लोग पर्दे के पीछे इन तमाम चीजों को अंजाम देते थे।आज विलासिता में डूबे लोगो पर नशा इस कदर हावी है कि वह इन सारी मर्यादाओं को भूल चुके हैं।

आदिकाल की बात हो या वेद पुराण की अथवा ग्रंथों की सत्ता के लिए दकियानूसी चाल होती रही है जिसका उदाहरण महाभारत से लिया जा सकता है जिसमें एक ओर छल, कपट,हत्या, द्वेष,व  घृणा के अनेक  उदाहरण है तो दूसरी ज्ञान,मर्यादा, राजधर्म, धर्म और गीता के उपदेश भी हैं। 

सवाल यह उठता है कि हम किस ओर जाएं और समाज को किस ओर ले जा रहे हैं जाहिर है व्यक्ति से ही समाज है। जब देश की पार्टीयां अगर मर्यादा का पालन नही करेगी तो फिर उस देश का क्या होगा और वह किस ओर जाएगी।विगत आठ दशक से हम स्वतंत्र है लेकिन आज भी वही ढाक के कितने पात को परिभाषित कर रहे हैं।आखिर क्यों? इस देश को कभी भी साफ सुथरा राजनीतिक माहौल नही मिला जिसकी परिकल्पना सरदार पटेल,और लालबहादुर शास्त्री जी जैसे नेताओं ने की थी।सबके सब अपने आप को चमकाने में और कुर्सी बचाने में लगे रहे हैं।

आज यह विकट परिस्थिति भी परिवारवाद का राजनीति में वर्चस्व का एक ओछी उदाहरण हमारे सामने परिलक्षित की गयी जिसे कोई भी ज्ञानी मानव अच्छा नही कह सकता।
                                             आशुतोष 
                                           पटना बिहार 


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