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जीन पियाजे का सिद्धांत/Jin Piyaze ka siddhant/Sangyanatmak Vikas ka siddhant/Paiget

             जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत       


 संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत    

ज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत                            

अवस्था का सिद्धांत    

विकासात्मक विज्ञान का सिद्धांत

निर्माण एवं खोज का सिद्धांत              

Jin Piyaze Paiget


जीन पियाजे Paiget से सम्बंधित व्यक्तिगत जानकारी             

जीन  पियाजे के 3 बच्चे थे इन्होंने अपने स्वयं के बच्चों पर प्रयोग किया।

यह एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सक थे

इन्होंने जेनेवा में एक लेबोरेट्री स्कूल की स्थापना किया।


जीन पियाजे ने बालक के उम्र के आधार पर 4 (चार) अवस्था बताया है। 

मानसिक विकास की अवस्थाएं

(१) इन्द्रियजनित (संवेदिक) गामक अवस्था  : जन्म के 2 वर्ष

(२) पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था : 2-7 वर्ष

(३) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था  : 7 से12 वर्ष

(४) अमूर्त या औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था  : 12से 15वर्ष



1  :-   इन्द्रियजनित (संवेदी) गामक अवस्था       :-            जन्म के 2 वर्ष

★ बालक स्वकेन्द्रित होता है।

★ भूख लगने पर बालक रोकर व्यक्त करता है। जो दिखाई देता है उसी का अस्तित्व मानता है।

★ इसमें बालक केवल अपनी संवेदनाओं और शारीरिक क्रियाओं की सहायता से ज्ञान अर्जित करता है। 

★ बच्चों में जन्म से ही उसके भीतर सहज क्रियाएँ होती हैं।

★ वस्तुओं ध्वनिओं, स्पर्श, रसो एवं गंधों का अनुभव सहज क्रियाओं से प्राप्त करता है।


2  :-   पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था    :-             2 से 7 वर्ष

★ बालक स्वकेन्द्रित व स्वार्थी न होकर दूसरों के सम्पर्क से ज्ञान अर्जित करता है। 

★खेल, अनुकरण, चित्र निर्माण तथा भाषा के माध्यम से वस्तुओं के संबंध में जानकारी बढ़ाता है। 

★  इस अवस्था में अनुक्रमणशीलता पायी जाती है। बालक के अनुकरणो मे परिपक्वता आ जाती है।

★ बालक में संकेतों एवं भाषा का विकास तेज होने लगता है।

★ बालक छोटी छोटी गणनाओं जैसे जोड़ घटाओ आदि सीख लेता है।संख्या प्रयोग करने लगता है। 


3  :-     मूर्त संक्रियात्मक अवस्था        :-           7 - 12 वर्ष

★ इस अवस्था में बालक विद्यालय जाना प्रांरभ कर लेता है

★ वस्तुओं एव घटनाओं के बीच समानता, भिन्नता समझने की क्षमता उत्पन हो जाती है 

★ संख्या बोध, वर्गीकरण, क्रमानुसार व्यवस्था, किसी वस्तु ,व्यक्ति के मध्य पारस्परिक संबंध का ज्ञान हो जाता है। 

★  वह अपने चारों ओर के पर्यावरण के साथ अनुकूल करने के लिये अनेक नियम को सीख लेता है|


4 :-    औपचारिक या अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था     :-          12 - 15 वर्ष 

★ तार्किक चिंतन की क्षमता का विकास

★ समस्या समाधान की क्षमता का विकास

★ वास्तविक-आवास्तविक में अन्तर समझने की क्षमता का विकास

★ वास्तविक अनुभवों को काल्पनिक परिस्थितियों में ढालने की क्षमता का विकास

★ परिकल्पना विकसित करने की क्षमता का विकास

★ विसंगंतियाँ के संबंध में विचार करने की क्षमता का विकास

★ जीन पियाजे ने इस अवस्था को अतंर्ज्ञान कहा है



मुख्य शब्दावली 

■ स्कीमा :- मस्तिष्क से जुड़ी क्रियाए स्कीमा कहलाती है

■ भाषा सम्बंधित विचार  :-  पहले भाषा फिर विचार आता है

■जिन पियाजे ने भाषा को अहम केंद्रित भाषा माना है

■ अनुकूलन :-  वातावरण के साथ स्वयं को ढालना अनुकूलन कहलाता है बच्चों में  वातावरण के साथ 

सामंजस्य स्थापित करने की बेहतर क्षमता होती है।

■ आत्मसातीकरण :- पूर्व ज्ञान को नवीन ज्ञान से जोड़ने की प्रक्रिया को आत्मसातीकरण कहते है। 

■ समायोजन :-   जब बालक अपने पुराने ज्ञान के स्थान पर नए ज्ञान को स्थापित करता है तो

 उसे समायोजन कहते है।


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