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प्राण-प्रिय कवि सलिल सरोज /Pran Priye /kislay

      प्राण-प्रिय


अधरों पर कुसुमित प्रीत- परिणय
केशों में आलोकित सांध्य मधुमय
चिर- प्रफुल्लित  कोमल किसलय
दिव्य-ज्योति जैसी मेरी प्राण-प्रिय  1

दृगों से प्रवाहित होता रहता हाला
वो मेरी मधुकलश वोही मधुशाला
मृग- पदों से कुचालें भरती  बाला
प्राण - घटकों की उष्मित दुःशला  2

ब्रह्माण्ड की नव- नूतन कोमल  काया
मरूभूमि में आच्छादित शीतल  छाया
व्योम की मस्तक पर आह्लादित माया
मनभावन  मुस्कान  की  वो  सरमाया 3

विटपों के अंगों पर जैसे  कोई चित्रकारी
वायु के बाहुबलों पर द्रुत वेग की सवारी
चहुँ दिशाओं की वो एक-मात्र पैरोकारी
वो ही रम्भा -मेनका, वो ही फूल कुमारी  4

भाव-भंगिमा में देवी का अवतरण
कवि के कविता का नया संस्मरण
किसी किताब  का प्रथम  उद्धरण
जिस्म से जवान, ख्यालों से बचपन  5

जो भी शांतचित्त हो देख ले, विस्मित हो जाए
इहलोक में विलीन हो जाए ,  चकित हो जाए
खड़ी बोली से देवों की बोली संस्कृत हो जाए
किसी देवालय के प्रांगण  सा झंकृत  हो जाए  6

उसके आगमन से जीवन में इष्ट पा लिया
अपने उपेक्षित मन का परिशिष्ट पा लिया
किसी अरुंधति ने अपना वशिष्ठ पा लिया
मूक अक्षरों ने साकार होता पृष्ठ पा लिया  7

तुम्हारे होने से अपने सुकर्मों का ज्ञान हुआ
शील  और सौम्य परिणति का प्रमाण हुआ
साधारण जीवात्मा सा जीव,  मैं महान हुआ
असफलता से  सफलता  का  सोपान हुआ  8

शीश झुका का प्रतिदिन ईश-वंदन करता हूँ
अवतरित महिमा  का  अभिनन्दन  करता हूँ
इस अनुकम्पा का बारम्बार भंजन करता  हूँ
मेरी प्राण-प्रिय, तुम्हारा अनुनन्दन करता  हूँ  9

मेरे सजीव  होने का  अनुपम  आधार हो तुम
मैं जिस मंझधार में था,उसकी पतवार हो तुम
मैं तो बस लेश्मात्र हूँ,मेरा सारा संसार हो तुम
हे प्राण-प्रिय,मेरी जीवटता का आह्वान हो तुम  10


सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन
नई दिल्ली
Email: salilmumtaz@gmail.com
9968638267

पत्राचार का पता:-जी 006, टावर 3

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नवीन अस्पताल के समीप

ग़ज़ियाबाद 

उत्तर प्रदेश-201014

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