पुरुष
पुरुष होना
आसान कहाँ था...
खामोशी से सबकी
ख्वाहिश का जिम्मां लेना
आसान कहाँ था...
पंक्ति में आगे होने पर भी
लेडीज फर्स्ट कहना
आसान कहाँ था...
माँ,पत्नी हैं ईस्ट- वेस्ट सी
सामंजस्य बिठाना
आसान कहाँ था...
खुद के नखरे भूल
सुबह की ट्रेन पकड़ना
आसान कहाँ था....
क्रिकेट,पेंटिंग,गजलें भुला
दवा के पर्चे रखना याद
आसान कहाँ था....
जिम्मेदारी को
फर्ज समझना
आसान कहाँ था...
पुरुष होना आसान कहाँ था
छिपा के आंसू मुस्कान लगाना
आसान कहाँ था...
अंजू 'लखनवी'
अस्टिटेंट प्रोफेसर
एवं कवयित्री
बहुत आभार सम्पादक जी
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