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Dhiraj kumar pachwariya ke muktak


मुक्तक

अश्क़ों  की  ज़द  में  डूबते  अख़बार  भी  देखे  हैं
सिसकियों की चर्चाओं से गरम बाजार भी देखे  हैं
जीतने  को  दुनिया  जो   ख़ुद  सिकंदर  हो   गए,
लुटती आबरू पर ख़ामोश  चौकीदार  भी  देखे हैं

धीरज कुमार पचवारिया✍✍

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