भाई साहब बोले
रामबदन रोज की तरह अपने खेतों में काम कर रहा था काम करते हुए उसे चाय पीने की तलब लगी।जो प्रायः रोज का रूटीन ही था ।वह काम छोड़ बगल वैद्य जी की दुकान की ओर चल पडा। वैद्य जी की दुकान कम राजनीति अखाड़ा और अखाडे पर विश्लेषण और उपाय पर चर्चाएं आम बात थी, जबकि वैद्य जी भले ही चाय की दुकान चलाते थे, पर वो राजनीतिक समझ के साथ साहित्यिक रचनाएं लिखते थे जो प्रायः अखबारो में छपती थी।
वैद्य जी देखते ही बोले कैसे हो रामबदन?
ठीक हूँ ! वैद्य जी दुकान पर भीड़ थी, और सभी लोग नोटबंदी पर दलील दे रहे थे।
एक भाई साहब ने कहा- ये नोटबंदी तो ठीक ही था, होना भी चाहिए, तो दूसरे ने कहा होना तो ठीक है भैया! पर ऐसे नहीं, सरकार को नोट ही ऐसी बनानी चाहिए जो एक समय सीमा पर खुद खत्म हो जाय सारे झंझट से छुटकारा ।।
वो कैसे? भैया तनिक सुझाव तो दो ।। इतना बडा जो ये जैन कांड हुआ है रूपया इतना-इतना कैश मिला है सब न खराब खुद हो जाता ।। ये पैसा तो बाजार का है, पब्लिक का है, सरकार का है लेकिन देश में इससे भी कहीं ज्यादा धनकुबेर बैठे हैं, सोचो कितना पैसा देश के अंदर दीवारो में कैद हैं जबकि इन्हें बाजार का रौनक होना चाहिए था।अगर नोट में खुद समाप्त होने की शक्ति हो जाये तो काला धन कोई रखेगा ही नहीं।।।
रामबदन एकटक उनकी बातो को सुनकर बोला हां ये ठीक रहेगा लेकिन ये तो चाय की दुकान है यहां तो नोट नहीं छपेंगे । काश यही सोच सरकारों को भी आये और इन काले कुवेरों के धन पर लगाम लग सके।
एक तय समय सीमा के अंदर नोटो का चलन में न होना एक जटिल समस्या का सरल उपाय हो सकता है।।
आशुतोष
पटना बिहार
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