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मां सब कुछ है maa

          माँ

मां है मन्दिर, मां ही पूजा
माँ के चरणों मे स्वर्ग है होता।
मां से बढ़कर कोई नही है दूजा
माँ है रिश्तो की खान
माँ से ही घर-परिवार।।
मां है जन्मदात्री पालनहार
गर्भ मे रखती, प्रसव पीड़ा सहती
रहन सहन चल चलन सिखाती
सभ्यता संस्कृति का पाठ पढ़ाती
माँ से ही शुरू होता है संसार
माँ से मिलता है ढेर सारा ज्ञान।।
सर मां का आँचल सुखों का सागर
चिंतातुर रहती, पल पल देखभाल करती
ममता की छाव में सदा रखती
भिन्न भिन्न व्यंजन खिलाती
लोरी सुनाती, स्नेह से सुलाती
संकट मे दुर्गा काली बन जाती
कष्टों को हर लेती मां।।
मां है महान सरस्व करती त्याग
रातदिन ईश्वर से प्राथना करती
सुबह से शाम दिनभर मेहनत करती
कभी भी नही थकती मां
कौन कहता है जमी पे खुदा नही
खुदा के रूप मे धरती पे रहती है मां।।
           राजू कुमार "मस्ताना"

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