""आस्था और विश्वास""
गाँव का लगभग चार सौ साल पुराना पीपल का वृक्षबुजुर्ग, देवता है हमारा
जिसकी छत्र-छाया मे
फल फूल रहा है गाँव ,
नजर रखता है वह
हर आने- जाने वाले पर
गाँव की रंभाती गायो पर
नई नवेली दुल्हनो की चूडियो की
खनखनाहट पर
लेता है सुगंध
देशी घी के होम पर
होता है प्रसन्न
नवजात की किलकारियो पर
रोता है कभी
गाँव के लंगडे कुत्ते की मौत पर
बेमौसम ओलों की वर्षा पर,
बंधाते रहता है
उस एक कच्चे धागे से
जिसे बाँधकर जाती है सुहागिने
वर्षों पुराने इसके तने से,
खड़ा रहता है डटकर
गाँव के पहरेदार -सा
हर आंधी तूफान को झेलता
ताकि बुझ न पाये कभी
गाँव- वासियो का
वह नन्हा सा दिया
जो जल रहा है
आज तक
छांव मे उसकी .... ।
दयाशंकर बर्मन सुबोध
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