हमारी पीड़िता,तुम्हारा अपराधी
बात चाहे आसिफा की हो, ट्विन्कल की जो लोग अपराधियों मे पुजारी,मौलवी और पीड़िता मे हिन्दु,मुसलमान देखे उनके लिए बिना किसी अपशब्द के सिर्फ थू हैं,मुझे बैर न तो हिन्दुओं से है न मुसलमानों,न बोद्धों से न इसाईयों से बैर उस विचारधारा से हैं,जो एक मौलवी के नाबालिक लड़कियों से दुष्कर्म करने पर चुप हो जाती हैं, एक पुजारी के मासूम से दुष्कर्म, हत्या करने पर भीड़ अपराधी के समर्थन पर उमड़ पड़ती हैं जय श्री राम भारत माता की जय के नारे लगाती हैं,क्योकिं पीड़िता आठ साल की मुस्लिम हैं,वही भीड़ फिर इन्तजार करती हैं कब कोई मुसलमान किसी के दुष्कर्म करे और सारी भीड़ भँवर की तरह अपराधी को धार्मिक जामा देकर नीछ डाले और तो और इस धार्मिक छीटाकशी मे हम रमजान जैसे पाक और नवरात्रि जैसे पवित्र अनुष्ठानो को भी जोड़ देते हैं,और अवार्ड वापसी गैंग जिनको कभी कभी देश बहुत असुरक्षित महसूस होता हैं,ऐसी घटनाओं के होने पर उनका धार्मिक चश्मा कुछ बोलने की इजाजत ही नही देता,बैर उस विचारधारा से हैं जब केरल के चर्च मे वहा का फादर नन के साथ यौनाचार करे और समर्थक इसे सेवा बता कर खंडन करते हैं,हमे बैर करना चाहिए उस विचारधारा से जो आशाराम जैसे कुटिल व्यक्तियों की चरण वन्दना मे व्यस्त होतीे हैं और अपराध सिद्ध होने पर सड़क पर आकर राक्षसीकृत्य करने से भी परहेज नही करती,मुझे बैर हैं शान्तिप्रिय समुदाय उन बौद्ध अनुयायिओं से भी जो चन्द लोगो के हमले के बाद उसकी सजा अपराधी के धर्म के सभी लोगो को नुकसान पहुचा रही हैं।समास्या कही नही हैं,सिर्फ एक जगह हैं, हम बदला चाहते है बदलाव नही जब तक हम #मेरी_पीड़िता_तेरा_अपराधी की विचारधारा से बाहर आकर इस विचारधारा का खुल कर विरोध नही करेगें तब तक,पीड़िता और अपराधी कभी हिन्दु-मुसलमान कभी दलित-सवर्ण,कभी सिया-सुन्नी बन कर रह जायेगी और इन्साफ के नाम पर केवल और केवल हम नमाज,पूजा,प्रेयर,और साधना तक ही पहुचेंगे,और तब तक ऐसी संवेदनशील घटनाओं साधारण बताने वाले और हिन्दुमुसलमान गायगोबर को महत्वपूर्ण बताने वाले धूर्त लोग लोकतंन्त्र के मंदिर पहुचते रहेगें और हमारा घण्टा बजाकर चुनावी झुनझुना दिखाते दिखाते भीख देंगें कभी मुआवजा तो कभी अर्थदण्ड लेकिन जो नहि मिलेगा वो हैं इन्साफ कभी हम असिफा नाम सुनकर चुप हो जायेगें, कभी वो गुड़िया सुनकर, लेकिन असिफा गुड़िया, ट्वीन्कल हमे रोज सुनायी देगी कभी वाट्सअप पर कभी फेसबुक पर कभी अखबार मे कभी टीवी मे।निवेदन सिर्फ इतना हैं सारे धर्म से ऊपर उठकर आईये हम पीड़िता और अपराधी देखे न्याय की गुहार लगाये।
आंखो से धर्म की पट्टी को खोलिये,
सही को सही गलत को गलत बोलिए।
वर्ना मरती रहेगी आसिफा गुड़िया ट्वीन्कल,
आईयें साथ मे सिर्फ न्याय ही जोहिए।
अनुपम अनूप भारत
No comments:
Post a Comment