शीर्षक है :- आज की बस्ती..
घड़ी की सुई पर ,
टिकी है दुनिया ।
हर तरफ बाजार में ,
बिकी है दुनिया ।।
यह बेईमानों की बस्ती है ।
उन्हीं के लिए मस्ती है ।।
मझधार में गरीब की किस्ती हैं ।
नाले में उनकी अस्थि है ।।
पुलिस हो या नेता कोई ,
या कोई सरकारी कर्मचारी ।
सबके अंदर कूट-कूट कर ,
सिर्फ भरी है भ्रष्टाचारी ।।
सच कही नहीं दिखती है ,
आजकल तो बुराई की जीत है ।
सच्चाई जीती थी कभी ,
वो समय गई अब बीत है ।।
गद्दारों के आगे ,
झुकी है दुनिया ।
हर तरफ बाजार में ,
बिकी है दुनिया ।।
रचना- शुभम कुमार
पता- मुजफ्फरपुर, बिहार ।


मेरी कविता को प्रकाशित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।।
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