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नज़्म वो मेरा घर

*नज़्म*

*वो मेरा घर*

उभर जाती हैं मेरे ज़ेहन में अक्सर वो तसवीरें
मेरे बचपन की तहरीरें
वो मेरा घर
कि जिस घर को मेरी माँ
अपने हाथों से सजाती थी
उसे जन्नत बनाती थी....
मेरी दादी का इक कमरा
जहाँ थोड़े से थे सामान
पुराना सा वो इक बक्सा
तिलिस्मी सा...
उसे जब खोलती थीं वो
तो हम सब भाई,बहनों के लिए,
होता था कुछ ना कुछ...
कोई मासूम सी गुड़िया
कभी काग़ज़ की इक कश्ती..
न जाने कितनी खुशियों क़ैद थीं
तिलसमाती से बक्से में...
वो इक कमरा जहाँ हम ,
खेलते थे खेल गुड़ियों का...
सजा रक्खे थे मिट्टी के खिलौने गोशे-गोशे में...
बड़ा सा पेड़ था उस घर के आँगन में....
मेरी कोशिश थी बचपन से ही उन शाख़ों को छूने की...
वो कोशिश अब भी जारी है...
ज़रूर इक रोज़ उन शाख़ों को झुका दूँगी
अपने क़दमों में...
मुझे मालूम है
मुझे मालूम है...
मुझको बहुत से लोग रोकेंगे
उन शाख़ों को छूने से ...
करेंगे साथ मेरे सख़्तियां
बहुत चालें चलेंगे
न छू पाऊँ मैं शाख़ों को
कहीं ऐसा न हो -
उनकी अना को ठेस लग जाए..
न हो ऐसा कि क़द उनका
ज़रा बौना सा हो जाए..
मगर ज़िद है मेरी..
पहुँचूंगी मैं इक रोज़ मंज़िल तक
कहाँ तक रोक पाएँगे..
मुझे भी देखना है..
वो इक कमरा 
जहाँ बाबा के सब सामान रक्खे थे
बड़ी सी मेज़ उस पर ढेर था,
कितनी किताबों का..
वो इक कुर्सी थी जिसपर बैठकर वो गुनगुनाते थे...
वो घर का गोशा-गोशा,
जिसमें हम सब मुस्कुराते थे..
बहुत ख़ुशियाँ मनाते थे
उभर जाती हैं मेरे ज़ेहन में
अक्सर वो तसवीरें
मेरे बचपन की तहरीरें...
*अतिया नूर*
*ए ई,58,एन टी पी सी*
*ऊँचाहार,229406*
*रायबरेली,उत्तर प्रदेश*

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