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ग़ज़ल ghazal


              गजल

तबियत  जरा  सी  खराब   हो   गयी।
पूरा  वदन   मानो   शराब   हो   गयी।।

मीठा - मीठा  दर्द पसलियों मे उठ रहा।
लाल - लाल   आंखें    गुलाब   हो  गयी।।

मस्तक  की  गर्मी बढ़ी  थी   इस   कदर।
पड़े-पड़े   खाट  पर   आदाब   हो    गयी।।

मुझसे  आकर जो मिलती थी सुबहे-  साम।
वो   खुशी  आज   क्यूँ   ख्वाब    हो   गयी।।

चिंता   मे  तेरे   डूबा   था  ये   तन- वदन।
तेरा  आना  ही  मुझे    शबाब    हो    गयी।।

किसी तरह दर्दे  दिल  को बहला रही थी मै।
तेरा  सर   सहलाना दवा   नायाब   हो   गयी।।

स्वरचित                   ।। कविरंग।।
                  पर्रोई - सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)

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