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ग़ज़ल निजाम फतेहपुरी

 ग़ज़ल

221 2122  221 2122

अरकान- मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन

अंगूर की ये बेटी कितनी है ग़म कि मारी।
रहती है क़ैद हरदम बोतल में ये बेचारी।।

बेबस समझ के इसको जिसने भी चाहा छेड़ा।
कितनों ने साथ इसके यूँ रात है गुजारी।।

दर-दर भटक रही है सड़कों पे बिक रही है।
है बदनसीब  कितनी अंगूर  की दुलारी।।

गलियों से ये महल तक हर रात बनती दुल्हन।
देखो नसीब इसका फिर भी रही कुंवारी।।

ग़म हो या हो खुशी ये होती शरीक सब में।
फिर भी इसे बुरी क्यों कहती है दुनिया सारी।।

दिल टूटा जब किसी का इसने दिया सहारा।
ग़म के मरीज़ों को है ये जान से भी प्यारी।।

समझा न ग़म किसी ने देखो निज़ाम इसका।
हँस-हँस के सह रही है हर ज़ुल्म ये बेचारी।।

निज़ाम-फतेहपुरी
ग्राम व पोस्ट मदोकीपुर
ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)
6394332921
9198120525

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