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चुल्हा

    चूल्हा

कहां   बन  रहा   भोजन
चूल्हों   पर   आज।
लकड़ी बिना हुए
सभी मोहताज
ना रहा वह व्यंजन
ना रही ओ रसोई
उबला गैस पर
खाकर  सोई
वृक्ष काटने से
मानव नहीं आता बाज।। कहां बन - - - - -



ठंडक जब बढ़ जाती
बटलोई चूल्हे पर चढ़ जाती
शीत मे तापने के आता काम
देती  गर्मी   तन   को आराम
बनता भोजन सुबहे   शाम
मिटाया सिलेण्डर चूल्हे का नाम
छोटे - बड़े मिटते   देकर  दांज।। कहां बन----

तृण पत्तों  को जोड़ बटोर
ना गृह मे मचता कोई शोर
आज सिलेंडर यदि ना आवे
चमगादड़ घर में ढोल बजावे
भौहें  मैडम की तन  जाती
चूल्हे पे बनाना खल  जाती
गिरती पुरुषों पर विद्युत गाज।। कहां बन - - - ----

सभी  लोग अब वृक्ष लगाओ
बुझे  चूल्हों को पुनः जलाओ
पर्यावरण प्रदूषण दूर भगाओ
रुपये पैसों की बचत  कराओ
पौष्टिकता वाला भोजन खाओ
स्वच्छता मिशन को सफल बनाओ
जिससे हो  भारत को तुम पे नाज।। कहां बन - - - - -

                 ।। कविरंग उर्फ पराशर।।

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