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जीवन का लेखा जोखा

जीवन का लेखा जोखा

हनन और दमन तुम दूसरों का कर रहे हो।
उसकी आग में अपने भी जल रहे हैं।
कब तक तुम दुसरो को ररुलाओगें।
एक दिन इस आग में खुद भी जल जाओगों।
और अपने किये पर बहुत पछताओगें।
पर उस समय कुछ नहीं कर पावोगे।।

कहते है उसके के घर में देर है अंधेर नहीं।
जो अपने किये कर्मों से बच पाओगें।
और बिना फल भोगें यहां से नहीं जा पाओगें।।

बनाने वाले ने क्या संसार बनाया हैं।
इसमें सभी को अपनी भूमिका निभाना हैं।
 जीवनखाते में कर्मों का हिसाब लिखना हैं ।
और उन्हें यहां पर चुकाना हैं।।
जीवन का ये चक्र हमें समझना हैं।
और दुनिंयां को इसके बारे में बताना हैं।।

जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
09/06/2019

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