राजदेव का अंत
राजदेव का नाम लेते ही तमाम सवाल सामने उपस्थित हो जाते है। आखिर राजदेव है कौन? राजदेव एक विशाल काय हाथी था बड़ा ही समझदार जानवर था। पर बाबा राम उदयराज पाण्डेय कहते हैं कि राजदेव का नाम सुनकर आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जातेहै। पहले सवारी का साधन हाथी ही माना जाता था। बारात में जब अगुवानी होती तो हजारों हाथियों मे सबसे ऊंचा मस्तक राजदेव का ही रहता था। गाँव के वयोवृद्ध मास्टर साहब श्री वशिष्ठ पाण्डेय जी जो बड़े विद्वान है कहते है कि वैसा हाथी न है न हुआ न होगा। वास्तव मे उस कद काठी के हाथी आज दुर्लभ हैं। आगे कहानी कुछ दृश्यों मे विभक्त है उसे महाभारत का पर्व समझकर पढ़े तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। कितने महावत पिलवान आये और उनका अंत हुआ। तो कहानी प्रस्तुत है -।। प्रथम दृश्य।।
बाबू दुर्गा सिंह का बंगला जहां बड़े - बड़े लोग आसीन हैं। एक हाथी लेने की चर्चा चल रही है। नब्बा महावत को बुलाकर लाया गया। नब्बे को हाथियों के बारे मे बहुत जानकारी थी। आज वैसा जानकार पिलवान पूरे बस्ती जिले में नहीं थे।
बाबू दुर्गा सिंह - नब्बे चलना है सोनपुर के मेले में हाथी लेने क्या राय है।
नब्बा - जैसा हुकुम हो सरकार।
बाबू साहब - तो तैयारी बनाओ कल निकलने का।
नब्बा - ठीक है सरकार।
सभी लोग सोनपुर मेले में घूमते है एक से एक हाथी थी पर नब्बा की नजर एक छोटे से हाथी के बच्चे पर गड़ी थी।
बाबू साहब - बोलो कोई हाथी पसंद आयी।
नब्बा - जी मालिक वही छोटा राजदेव। मेरी नजर धोखा नहीं खायेगी। जब उसका समय आ जायेगा तो देखिएगा।
बाबू साहब - ठीक है जब तुम उसी पर अड़े हो तो ले लो।
हाथी वही बालक राजदेव ले लिया गया। अब सुबह से साम तक नब्बे उसी के साथ उठना, बैठना, उसी के साथ खेलना, उसके भोजन का प्रबंध करना यही सब नब्बे का दिनचर्या का अंग हो गया था। हाथी की जवानी आने लगी। दो नुकीली दाँत निकलने लगे। नब्बे रात मे ही हाथी को बारात जाने के लिए तैयार कर देते। राजदेव के दाँतों मे लालटेन टांग कर चल देते। बड़ा ही सुन्दर लगता। झूमते हुए हाथी चलती तो दर्शकों का हुजूम लग जाता।
इस प्रकार से दसों वर्ष तक राजदेव बाबू साहब के यहां रहे। एक दिन फागुन का महीना किसी के बारात जाने के लिए हाथी सजायी गयी और नब्बा हाथी को चुच्कार कर तैयार कर रहे थे। हाथी कभी नब्बे की बात काटता नही। कारण भी था कि वह बचपन से ही उसे अपने बेटे की तरह पाला - पोसा था। हर बात नब्बा की वह समझता था तथा नब्बे उसकी, दोनों में हरदम मनुष्य की तरह बात होती थी। हाथी तखवां पहुचते - पहुंचते गरम हो गयी नब्बा पूरी बात समझ गया था पर क्या करे सभी को बता दिया कि हाथी गर्म है आप लोग दूर ही रहें। किसी तरह से बस मे करके उसे एक पीपल के पेड़ मे बांध दिया और स्वयं उसकी रखवाली तथा मनुहार कर रहा था। जब कुछ रात हुई तो हाथी टैरा खाने लगा। नब्बे भोजन करने गाँव मे चले गये। इधर हाथी जंजीर तोड़ कर चल दिया। पूरे गाँव को मालूम था कि हाथी गरम है।
हकीकुल्लाह जो जाता के धोबी थे शौच के लिए एक अरहर के खेत में गये थे वहीं शौच कर रहे थे। हाथी कान उटेर कर उसी खेत के पास खड़ा था। अब क्या था हकीकुल्लाह का पेट खराब होने के कारण हवा तेज खुल गयी पों पों पीप्प। हाथी खेत में हलकर उनके पैरों को सूंड़ से पकड़ लिया वो हाय अल्लाह बचाओ - बचाओ चिल्लाते रहे पर किसी ने सुना नही। इधर राजदेव सूंड़ से पकड़ कर उसे हवा मे लहराने लगे, बधनी 500 मीटर दूर जा गिरा। हकीकुल्लाह को सात बार जमीन पर घुमा - घुमाकर पटका उसके लाश के परखचरे उड़ गये। वहीं हाथी हकीकुल्लाह के सीने पर पैर रखकर खड़ा था। नब्बे खोजते हुए वहां पहुंचे तो उनके होश उड़ गये। रात ही मे हाथी लेकर किसी तरह से घर वापस आ गये तथा सारी स्थिति बाबू साहब को बता दिया और कहा इसे बेच दें तो ही अच्छा है। पिछले साल भी फागुन महीने में गर्म हो गया था। राजदेव की दुश्मनी केवल आदमियों से थी जानवरों से नहीं। आज तक वह किसी जानवर को मारा नहीं था।
।। द्वितीय दृश्य।।
हाथी बेचने की तैयारी चल रही थी। पास के गांव छितौनी से विधायक जी हाथी लेने आये थे। पर बाबू साहब ने कहा - यह हाथी यहाँ के लोगो के हाथो नहीं बिकेगी। पर विधायक जी जिद धर लिए कि हाथी मै ही खरीदूंगा। और अपने रिश्ते दार हरी राय को बुलाया तथा हाथी धोखे से लेने की बात कही। हरी राय दूर के रिश्तेदार थे बाबू साहब हाथी बेच दिये रवन्ना उस्का बाजार थाना मे लिखा गया रवन्ना पर विधायक जी का नाम देखकर बाबू साहब बड़ा दुखी हुए पर कर भी क्या सकते थे सब लेन - देन समाप्त था। अब नब्बे को कहे कि पिलवानी तुम्हें करना है क्या कहते हो -
नब्बा - मेरा नाम नब्बा है मै नब्बे रुपए प्रति महीने लूंगा।
हा कर तो दिये पर उन्हें वह तनख्वाह मिला नहीं नब्बे वहां से बिना पैसा लिए वापस आ गए घर। अब दूसरा पिलवान इलाके को लाया गया बड़े मसक्कत के बाद हाथी उसे स्वीकार किया। गांव में एक शादी पड़ी जिसमें राजदेव को तैयार किया पर हाथी गर्म थी इलाके ने मालिक को बताया मालिक माने नहीं कहे इज्जत का सवाल है ले जाओ पियारे पहलवान हमारे खास आदमी हैं। हाथी पर इलाके तथा पियारे पहलवान चढ़ कर चल दिए। हाथी महावत की बात नहीं मान रही थी। इतने में पियारे को पेसाब लग गया बोले हाथी रोको पेशाब कर लूं।
इलाके - बाबू ऊपर से ही कर लो हाथी गर्म है।
पियारे - अरे बेवकूफ़ गणेश जी के ऊपर ऐसा कर्म नहीं कर सकता बड़े जोर से डप्टे।
अब क्या था अंकुश गड़ाकर हाथी को बैठाये तो पिछले पैर तो मोड़ दिया पियारे उतर गये हाथी ताड़ बैठी। पियारे आकाश मे फरी खेलने लगे ऊपर से नीचे की तरफ आ रहे थे तभी बीच में ही सूंड़ पर रोक लिया और जमीन पर घुमा - घुमकर पटकने लगा अंत मे उसके सीने पर दोनों पैर रखकर खड़ा हो गया सारी पसलियां तड़तड़ा कर चूर हो गयी। इलाके पीठ पर बैठा सार दृश्य देख रहा उसे बार-बार पेशाब छूट रहा था शायद भय से टट्टी भी निकल गई थी। हाथी इलाके को पकड़ने के लिए सूंड़ ऊपर चलाता इलाके रस्सा कस के पकड़ के पूंछ की तरफ हो जाते। हाथी का जुगाड़ लग नहीं पा रहा था। जोर - जोर से हाथी चिल्लाता और दौड़ता पीठ हिलाता इलाके अपनी समझदारी से तीन दिन तक राजदेव के पीठ से चिपके रहे।
इधर इलाके का दूसरा भाई मोहर अली भी ग्राम बैसारे बल भद्र पाण्डेय का पिलवान था। भाई की मुसीबत सुन आनन-फानन में वह सौरहवा ताल मे पहुंचा जहां भाई तीन दिनों से उपवास कर बदहवास राजदेव के पीठ पर पड़ा था।
मोहर अली - बड़े भाई मै आ गया हूँ घबराना मत अभी अपनी हाथी तुम्हारे हाथी के पास ला रहा हूँ उसके पीठ से मेरे हाथी पर आ जाना।
इलाके - ठीक है सहमे हुए आवाज़ मे।
मोहर अली - हाथी करीब लाया पर राजदेव चाल समझ गया और घूमकर मोहर अली को हाथी के पीठ से खींच लिया और अपने पैरो से कुचलकर मार डाला। अब तो इलाके की हालत और खराब हो गयी। अब हाथी की चर्चा पूरे पौहद मे फैल गयी हाथी जिधर निकलता दूर - दूर लोग मजमा जुटा लेते। इलाके को एक सप्ताह बिना खाये - पिये हो गया था। पूरा शरीर डर एवं दहशत से सूख कर कांटा हो गया था। हाथी महुलानी गाँव मे प्रवेश कर रही थी कि पिलवान चिल्लाया राजिंदर बाबू बचा लो अब हमे यह मार डलेगा बचा लो बाबू मै मरना नही चाहता। राजिंदर बाबू का खपरैल लम्बी चौड़ी ओसारी जिसमें 121 लकड़ी के खम्भे लगे थे। राजिंदर बाबू एक दौरी धान और भेली भरकर खपरैल के ठीक नीचे रखकर घर के अंदर हो लिए हाथी उसे खाने पहुंचा और इलाके खपरैल पर कूद कर चढ़ गये तथा मुड़ेर की तरफ चढ़ने लगे। राजदेव को एहसास हो गया और फुर्ती से ऊपर लकड़ी के दासे में सूंड़ फसाकर खींच लिया 41 खम्भे तथा आधी सहन धराशायी हो गयी। इलाके राजदेव के पैरों तले आकर गिरा उसे अपने दांतों से उसके सीने को जमीन पर रख के दबाव दिया इलाके मुल्के अदम चले गये। आंख तथा ओझड़ी बाहर आ गयी।
।। तीसरा दृश्य।।
हालत दिन प्रति दिन बिगड़ती जा रही थी। प्राथमिक विद्यालयों में अध्यापक हाथी से बचने के उपाय बता रहे थे। हाथी आने पर सभी बच्चे विद्यालय के अंदर हो जायेंगे। बाबा राम भूषण दास लोंगों को जागरूक कर रहे थे कि हाथी दीपक देखकर दरवाजे पर आ जाता है सभी लोग मकान के भीतर सोवें नहीं तो खतरा हो जायेगा। उधर विधायक जी नब्बा को 150 रुपये देकर हाथी कब्जा मे लाने के लिए लाये। हाथी गेंगटा बाग मे खड़ा था। नब्बे एक शीशम के पेड़ पर बैठकर बोले - बेटा राजदेव यह क्या हो रहा है। हाथी नब्बे की आवाज सुन दौड़ा पेड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया।
नब्बा - बेटा हद हो गयी अब तो मान जा। हाथी सुन रहा है। मेरी बात मानोगे। सर हिलाकर मंजूरी दी नब्बे ने कहा मै भाला गिरा रहा हूँ ऊपर उठाओ। भाला ऊपर उठा दिया फिर गजबांक गिराया उसे ऊपर उठाया पुनः गमछा गिराया उसे उपर उठा दिया। नब्बे को पूरा विश्वास हो गया कि हाथी नियंत्रण मे है। राजदेव के पीठ पर नब्बा सवार हो गए। तीन किमी की दूरी मात्र 7 मिनट मे तय कर राजदेव दरवाजे पर आ गया। नब्बे पीठ से उतरकर हाथी पेड़ से बांध दिया और विधायक जी को नमस्कार कर घर के लिए चल पड़ा। विधायक जी के कई बार कहने पर वह पिलवानी करने को तैयार नहीं हुआ।
।। चौथ दृश्य।।
आज नया महावत ईदन को लाया गया। हाथी ठंडा हो गया था। ईदन राजदेव की सेवा में रात-दिन तत्पर थे। राजदेव भी राजी हो गया था ईदन के साथ रहने के लिए।
इधर एक शादी आ गयी कर मैनी घाट पर। ईदन राजदेव को तैयार कर रस्सा कस कर चल दिए। राजदेव आज कुछ गर्म दिख रहे थे। किसी तरह बारात तो बीताकर वापस ईदन आने लगे तो रास्ते मे चारा का प्रबंध करने के लिए पीपल के पेड़ मे राजदेव को बांधकर पीपल की डाली काटने लगे। राजदेव जोर - जोर से चिघ्घाड़ने लगा। किसी तरह से पेड़ से कूदकर कर ईदन नौ दो ग्यारह हो गये तथा रास्ते मे बताते गये कि बाबू हाथी गर्म हो गयी है। इधर राजदेव एक ही झटके में लोहे की जंजीर तोड़ डाला और घर के तरफ दौड़ते हुए चल दिया। रास्ते में फैय्याज नाम का आदमी झाड़ी मे शौच कर रहा था और उसे खांसी आ गयी राजदेव उसे पकड़ लिया सात बार हवा मे पैर पकड़ कर लहराया तथा जमीन पर कस-कस के पटकने लगा। सर गर्दन से टूट कर 100 गज की दूरी पर जा गिरा। तब यदि मोदी सरकार होती तो घर-घर शौचालय होता, तो कम से कम दो लोगों का जान बच ही गया होता।
।। पांचवां दृश्य।।
हाथी का आतंक चरम पर था। बस में करने के लिए पिलवानों के छक्के छूट गये थे। पर बकुली खां आ आये और कहे -
बकुली खां - मालिक मै ऐसा - वैसा पिलवानी नहीं हूँ कल सुबह तक यदि हाथी पकड़ कर दरवाजे पर आपके बांध न दिया तो मेरा नाम बकुली खां नहीं।
मालिक - हमे पूरा विश्वास है बकुली।
बकुली खां - मालिक गोरखुल तैयार करवाया जाय। जिसमें लोहे के नुकीले 8-8 कीलें लकड़ी के पटरी में ठोंकी जांय तथा हाथी के रास्ते में धूल मे ढंक दी जाय। जब हाथी का पैर उस पर पड़ेगा तो वह पैर मे धंस जायेगा तो हाथी हम उसी वक्त पकड़ लेंगे।
मालिक - सुबह तुम्हें सामान मिल जायेगा।
दूसरे दिन रास्ते में गोरखुल गाड़ दिए गये सारा गांव तमाशा देख रहा था। पिलवानों का समूह लेकर बकुली खां राजदेव को ललकार तभी सूड़ ऊपर उठाये चिघ्घाड़ मार राजदेव यमराज की तरह बकुली खां पर टूट पड़ा। और एक पेड़ के नीचे खंधक के पास भाला लेकर मुस्तैदी से बकुली खड़ा है। इधर चभ्भ से लोहे की कीलें राजदेव के आगे वाले पैर मे उसपार हो गया। पैर से खून के फब्बारे निकल रहे थे। राजदेव बैठकर कीलें निकालने की कोशिश कर रहा था कि बकुली भयंकर भाला राजदेव के दांत के बगल में ठोंक दिया। राजदेव दर्द से तिलमिला उठा और चिघ्घाड़ मार कर बकुली खां पर टूट पड़ा। बकुली कलेजा हाथ में लेकर जी जान देकर भाग रहे थे तथा एक पेड़ की डाल हाथ में पकड़ लिए थे उस पर चढ़ने की सोंच रहे कि इतने मे राजदेव बकुली का पैर पकड़ लिया तथा एक ही झटके में डाल सहित बकुली राजदेव के पैरो के नीचे आ गये थे। क्रोध मे बकुली के सीने में दोनों दाँत दबा दिए जिससे बकुली के सीने में दो होल हो गया। बकुली के शरीर को आकाश में राजदेव उछालता तथा ऊपर से गिरती लाश को दांतों पर रोक लेता यह कार्य ढाई घंटे चला। अंत में बकुली खां का एक पैर अपने पैर के नीचे दबाकर दूसरे पैर को सूंड़ से पकड़ कर चीर डाला। बकुली की लाश बिटुर कर गेंद की तरह हो गयी थी।
उधर जनपद बस्ती के डी यम साहब के आदेश से दो फोर्स के सिपाही 3नाट3 लेकर राजदेव को दागने के लिए आ गये। आज दिनांक 12/02/1962 का आर्डर था जिसमें हाथी को दागने का आदेश था। आदेश सबने देखा। हाथी कठेला ताल मे जल क्रीड़ा कर रहा था । सूंड़ मे पानी भर कर पीठ पर उड़ेल रहा था। एक सिपाही का नाम सतपाल सिंह तथा दूसरे का तूफान अली था।
तुफान अली - सतपाल गोली चलाओ।
सतपाल - पहले गोली तुम चलाओ तुफान क्योंकि गणेश जी हमारे देवता हैं।
तुफान - नहीं तुम गोली चलाओ
अंत मे सतपाल पहला फायर किये वह गोली राजदेव को लगी नहीं। राजदेव घूमकर सीधा हुआ और दौड़ना चाहा तभी दूसरी गोली तूफान की सीधे राजदेव मस्तक मे जा कर धंस गयी। कई राउंड एल जी राज देव के शरीर को छलनी कर दिए थे, वह पानी में बेहोश होकर गिरा जब तो पानी के छींटे आधे आकाश तक पहुंच गये तथा दस मिनट तक पानी का मानो बरसात होने लगा। राजदेव फों-फों - फों-फों सूंड़ ऊपर उठाये कर रहा था। आधे घंटे बाद एकदम शांत हो गया। चारो तरफ भीड़ खड़ी थी सभी की आंखें नम हो गयी थी। मानो लोग अश्रु पूरित नेत्रों से राजदेव की अंतिम विदाई कर रहे थे। एक बड़ा विछोह राजदेव से सबका हो गया।
स्व लिखित ।। कविरंग।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)


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