कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

रक्षाबंधन

                रक्षाबंधन

पन्द्रह दिनों से इंतजार के बाद ओशो की छुट्टी मंजूर हो गयी मात्र दो दिन के लिए। अब क्या था फटाफट तैयार हुआ और  बस में सवार हो गया तथा ढाई घंटे मे घर पहुंच गया। घर पर माता जी का चरण स्पर्श किया और कहा जल्दी थैला  दो बाजार जाना है।
माता जी ने कहा-अभी आये हो क्या करने के लिए बाजार जाओगे?
ओशो ने कहा- जानती नही कल रक्षाबंधन है अभी शापिंग करनी है बहन के लिए -
गुड़िया राय - ले यह थैला है कहकर ओशो के हाथ में अनमनश्क भाव से पकड़ा दिया।
ओशो बड़ा खुश था बहन के लिए सूट कंगन खाने की बस्तुएं खरीद लिया और थैला पूरा गिफ्ट से भरा था। थैला लाकर घर रख दिया।
              सुबह से गाँव में पूरा चहल - पहल था। हीरा फुच्चे, गोलू, भोलू की कलाइयों पर रंग - बिरंगीं राखियाँ चमक रही थी। ओशो की कोई सगी बहन नहीं थी केवल मौसी की लड़की सपना हर साल ओशो को रक्षाबंधन बांधती थी।
ओशो - मम्मी दोपहर हो गया सपना आयी नहीं क्या बात है अभी कुछ खाया नहीं था सोंचा था राखी बंधा कर ही जल ग्रहण करुंगा।
मम्मी - बेटा जब तेरे पास बहन नहीं है तो ऐसे ही होगा पहले अपने से फुर्सत मिलेगी तब आयेगी ना। चल खाना खाले दोपहर के तीन बजने वाले है।
ओशो - नहीं मां जबतक राखी बंधवां नहीं लूंगा भोजन नहीं करुंगा।
            किसी ने आकर बताया कि सपना अपने बहन के घर गयी है। वह एक सप्ताह बाद आयेगी। यह बात सुनकर ओशो के आंखों मे पानी आ गया और वह सोंच रहा था काश मेरी बहन होती तो आज हमारी हथेली भी सजी होती। बार - बार अपनी मम्मी की तरफ देख रहा था और उस थैले की तरफ जिसमें ढाई हजार के गिफ्ट भरे पड़े थे। साम होने को हो गयी सूरज ढलने ही वाला था कई बार मम्मी की फटकार सुन चुका था खाने के लिए अब किसका इंतजार है। उसने कहा - ठीक है मां।
इतने मे मामू की  गाड़ी दरवाजे पर आके रुकी तथा उनके साथ एक लड़की भी बैठी थी जो थी कंचन मामू की प्यारी बेटी। दौड़कर मेरे पास आयी और मुझे अपने सीने लगा लिया और कही मेरा भाई मेरे लिए सुबह से व्रत किया है। बिना देर लगाए एक सुंदर सी राखी ओशो के सूनी कलाई पर बांध दी और दोनों खिलखिला कर हँस दिए। ओशो के खुशी को शब्दों मे व्यक्त नहीं किया जा सकता है।

स्वलिखित               ।। कविरंग।।
                  पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)

No comments:

Post a Comment