खट्टे - मीठे अनुभव यमुनोत्री के
साम को ही चार धाम यात्रा के लिए वाहन की व्यवस्था मे हम लोग दौड़ रहे थे। वाहन की व्यवस्था हो गयी अब हम लोग निश्चिंत होकर सोये। प्रातः 6 बजे गाड़ी आकर दरवाजे पर खड़ी हो गयी सभी लोग तैयार होकर सवार हो गये। अपनी जीवन की डोर चालक देवेन्द्र के हाथ में सौप दिया। ऋषिकेश से पर्वतीय यात्रा प्रारंभ हो गया। एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर गाड़ी सारा दिन रेंगती रही साम 5 बजे उत्तर काशी के बिड़ला धर्मशाला में निवास किया गया। सभी लोग थके थे चारपाई पर गिरते ही सब सो गये मै बैठकर मोबाइल चार्ज कर रहा था तथा छोटेलाल पैर दबा रहे थे। अंत में मै भी सो गया पता नहीं कब छोटेलाल सोया। प्रातः नहा धोकर फिर वाहन मे सभी सवार हो गये चालक ने बताया कि हम लोग यमुनोत्री यात्रा पर चल रहे हैँ। थोड़ा यमुनोत्री के इतिहास पर भी दृष्टि पात करना जरूरी है इसलिए उसे थोड़ा पेश कर रहे है -
पौराणिक कथा के अनुसार असित मुनि का निवास स्थान यहीं था वह यहां से गंगोत्री मे स्नान करने जाते थे परन्तु वृद्ध हो जाने पर पर्वत पार करना दूभर हो गया तब देवि गंगा एक धारा यहाँ प्रगट कर दी जिससे उनका स्नान - ध्यान आसन हो गया। देवि यमुना माता का मंदिर टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रताप शाह द्वारा 1919 ई0 मे बनवाया गया। परन्तु वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया द्वारा 19वीं सदी में जीर्णोद्धार कराया गया।
यमुनोत्री तीर्थ उत्तर काशी जिले के राजगढ़ी (बड़कोट) तहसील में ऋषिकेश से 251 किमी उत्तर पश्चिम में स्थित है। यमुनोत्री हिमनद से 5 मील नीचे दो वेगवती जलधाराओ के वीच एक कठोर शैल पर स्थित है। सबसे आकर्षण यहां की गर्म जलधारा है जिससे अहर्निस ओम के सदृश ध्वनि निकलती है। हनुमान चट्टी से 2400 मीटर दूरी पर यमुनोत्री तीर्थ है। हनुमान चट्टी के बाद नारद चट्टी, फूल चट्टी, जानकी चट्टी से होकर यमुनोत्री तक पैदल मार्ग है। खरसाली से यमुनोत्री तक की चार मील लम्बी सड़क का निर्माण दिल्ली के सेठ चंदमल ने 50000 रू0 देकर करवाया था। सबसे महत्वपूर्ण जानकी चट्टी है क्योंकि यहां रहने की उत्तम व्यवस्था है। यहीं हम लोग अरविंद होटल मे रात्रि निवास किया गया यहाँ से पौने छः किमी चढ़ाई के बाद यमुनोत्री तीर्थ मे प्रवेश हुआ। कुछ लोग जानकी चट्टी को सीता माता के नाम से जोड़ते हैं पर ऐसा नहीं है। सन् 1946 मे एक धार्मिक महिला जानकी देवी ने बीफ गाँव मे यमुना के दायें तट पर विशाल धर्म शाला का निर्माण किया तथा उनकी याद में बीफ गांव जानकी चट्टी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इसी गांव में नर-नारायण भगवान का मंदिर भी है। यमुनोत्री से पहले भैरव घाटी स्थित है। यमुनोत्री तीर्थ का पौराणिक महत्व को भी हृदयंगम् करना आवश्यक ही है -
अनेक पुराणों में यमुना के तट पर हुए यज्ञों का तथा कूर्मपुराण (39/9_13)मे यमुनोत्री महात्म्य का वर्णन मिलता है। केदारखंड (9/_1-10)यमुना के अवतरण का विशेष उल्लेख है। इन्हें सूर्य पुत्री यम सहोदरा गंगा यमुना को वैमात्रिक बहने कहा गया है। व्रह्मांड पुराण में यमुनोत्री को "प्रभाव तीर्थ" कहा गया है। ऋग्वेद (7/8/19)मे यमुना का उल्लेख मिलता है। महाभारत के अनुसार - जब पाण्डव उत्तरा खंड की यात्रा पर आये तब पहले यमुनोत्री, गंगोत्री तब केदारनाथ, वद्रीनाथ जी की ओर बढ़े थे तभी से उत्तराखंड की यात्रा वामावर्त की जाती है। हेमचंद्र ने अपने" काव्यानुशासन" मे'कालिन्द्रे' पर्वत का उल्लेख किया है। महामयूरी ग्रंथ के अनुसार "यमुना के स्रोत प्रदेश मे दुर्योधन का अधिकार था जिसका प्रमाण है कि पंचगायीं और गीठ पट्टी में दुर्योधन की पूजा आज भी होती है।
यमुनोत्री से 5मील ऊपर दुर्गम पहाड़ी पर" सप्तर्षि कुण्ड "है यहीं सप्तर्षियों ने तप किया था। यहां दुर्गमता के कारण लोग पहुंच नहीं पाते हैं। आज से लगभग 60 साल पहले विष्णु गुप्त उनियाल वहां गये थे और लौटते समय एक शिवलिंग देखा तो उठाना चाहा पर वह गायब हो गया। यमुनोत्री मंदिर परिसर 3235 मी0 ऊचाई पर स्थित है। यमुनोत्री का उद्गम चंपासर ग्लेशियर है। जो समुद्र तल से 4421 मी की ऊंचाई पर कालिन्द पर्वत पर अवस्थित है।
हम लोगों का महान सौभाग्य था कि ऐसे पुनीत तीर्थ की यात्रा किये। चढ़ाई चढ़ते - चढ़ते थककर चूर हो गये थे पर तप्त कुंड में स्नान करने जब उतरा गया तो सारी थकान पल भर में समाप्त हो गई और उस कुंड से निकलने की इच्छा नहीं हो रही थी। पुनः कुंड से बाहर निकलकर चावल दूसरे तप्त कुंड मे पकाया गया। वही यमुनोत्री का प्रसाद था उसे प्रेम पूर्वक ग्रहण किया गया। हम बता देना चाहते है कि पाठक गण सोचने को विवश हो रहे होंगे कि जब चावल उस जल मे पक जाता है तो व्यक्ति स्नान कैसे कर सकता है परन्तु स्नान के लिए गर्म जलधारा मे ठंडी जलधारा मिला दिया गया है जिससे स्नान सुलभ हो गया है। जय माँ यमुनोत्री की कहकर वहां से अष्ट मूर्ति विदा हुए।
स्व लिखित ।। कविरंग।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)
Good
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