भारतीय साहित्य में नारी विमर्श
भाषिक परम्परा में सर्वाधिक प्रचलित शब्द है-स्त्री, नारी और महिला। इनमे भी हमारी बोलचाल में स्त्री और महिला शब्द ज्यादातर इस्तेमाल किया जाता है। इन शब्दों के बनावट एवं व्यूत्पत्ति पर थोड़ा विचार कर लेना समीचीन होगा - संस्कृत में तीनो शब्द यौगिक हैं। पर हिंदी में नारी यौगिक शब्द है (नर+ई) शेष रुढ़ हैं।
निरुक्तकार ने स्त्री शब्द "" स्त्यै "धातु से निष्पन्न माना है जिसका अर्थ है - "लज्जा से सिकुड़ना"।
दुर्गाचार्य ने लिखा है - "लज्जार्थस्य लज्जन्तेऽपि हि ताः"। लज्जा से अभिभूत होने से औरत का एक पर्याय स्त्री है।
पाणिनी ने भी "स्त्यै" धातु से स्त्री की व्यूत्पत्ति की है पर इस धातु का अर्थ "इकट्ठा "करना लगाया है।
पतंजलि ने कहा है - "स्तन केशवती स्त्री स्याल्लोमशः पुरुष" अर्थात् स्तन केश वाली स्त्री होती है और रोम वाला पुरुष होता है। पर ये परिभाषाएं नारी के देह और स्वभाव के आधार पर बतायी गयी है।
नारी वैदिक शब्द नहीं - हाँ नृ/नर शब्द का प्रयोग वेद में मिलता है जिसका अर्थ - वीर, नेता आदि है।
महिला शब्द" मह"धातु से उत्पन्न है जिसका अर्थ - आदरणीया या पूज्या है। महिला शब्द मूलतः स्त्री की महिमा या समाज में उसकी हैसियत को रेखांकित करने वाला शब्द है। यहां हम औरत के प्रचलित शब्दों के ऊपर विचार किया तत्पश्चात हमे थोड़ा उनके महत्व को समझने का प्रयास करेंगे।
भारतीय साहित्य का प्रतिनिधि ग्रन्थ मनुस्मृति मे नारियों के महत्व को प्रदर्शित करते हुए कहते हैं कि "जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते है तथा जहां नारियों का अपमान होता हे वहां सारी क्रियाएँ निष्फल हो जाती है" -
यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यतैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रिया।।
महाराज मनु ने कहा है - उस विराट् ईश्वर के आधे शरीर से पुरुष और आधे शरीर से स्त्री उत्पन्न हुई -
द्विधा कृत्वाऽऽत्मनस्तेन देहमर्धेव पुरुषोऽभवत्।
अर्धेन् स नारी तस्यां स विराजमसृजत्प्रभुः।।
नारी जन्मदात्री है संसार का प्रत्येक भावी मनुष्य नारी के ही गोद में ही खेलता, कूदता तथा बड़ा होता है। कर्त्तव्य उत्तरदायित्व तथा त्याग के कारण पुरुष से नारी अधिक महान है। नारी की प्रेम भरी वाणी जीवन के लिए अमृत स्रोत है। नारी के नेत्रों मे करुणा, ममता, सरलता के दर्शन होते हैं। "नारी के हँसी में संसार की निराशा और कड़वाहट मिटाने की अपूर्व क्षमता होती है"।
कामायनी में श्री जयशंकर प्रसाद जी लिखते हैं -
नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास जगत नभ पग तल मे।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।।
पत्नी के रुप में नारी पुरुष की जीवन संगिनी ही नहीं होती बल्कि वह सब प्रकार से पुरुषों के हित का साधन है। शास्त्रकारों ने भार्या को छः प्रकार से पुरुषों के हितों का साधन बताया है -
कार्येषु मंत्री कर्णेषु दासी भोज्येषु माता रमणेषु रम्भा।
धर्मानुकूल क्षमया धरित्री भार्या च षड्गुणवती दुर्लभा।।
ऋग्वेद में नारी की प्रशंसा में लिखा है -
साम्राज्ञी श्रृशुरे साम्राज्ञी स्वाश्रवां भव।
ननान्दरी साम्राज्ञी भव अधिदेवेषु।।
इस प्रकार से हम कह सकते है कि नारी का यदि सार्ध्म्य न मिले तो पुरुष अधूरा है। जैसे सीता राम, राधेश्याम, लक्ष्मी नारायण, शिवा शिव, वैसे ही इस जगत मे समझना जरूरी है। आज के परिप्रेक्ष्य में हम पूर्व बातों से विस्मृत हो गये है तभी तो समाज मे नारी के प्रति कुत्सित भावनाओं ने घर बना लिया है। आये दिन हत्या और दुष्कर्म समाज मे हो रहे यदि हम अपने पूर्वजों का अनुसरण करेंगे तो निश्चित रूप से समाज में नारी के प्रति व्याप्त बुराइयों पर अंकुश लगा सकेंगे।
"हरिः ॐ शांतिः, शांतिः, शांतिः ।"
स्व लिखित ।। कविरंग।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)


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