दीप
।। 1।।
तन मृण्मय लघु दीप, सीप सागर सम दिखता
देखे मुझको तुच्छ जग, मग रुद्र शत सम तम संहर्ता।
जीव - ब्रह्म सम भेद लखत, फकत निज पै मै करता
दिनकर दिवस देत प्रकाश, भास मै रजनी तम हरता।।
।। 2।।
कर कुम्हार के चढ़त चाक, पाक बाहर मै आवत
समीपस्थ दिपावली उछाह, तम अथाह मै दूर भगावत।
होत खाक तन पर सेवा में, निज हृदय न कछु लावत
पर को परम प्रकाश देय , हेय संसार में पावत।।
।। 3 ।।
ज्योति - ज्योति में मिली-भली, गली कूंच मार्ग दिखावत
हरत दोष- दुख- दाह- दैन्य जन, मनहिं मन सचु पावत।
पथ परमारथ को कठिन घोर, रोर चहुंदिशिहिं मचावत
तम भोज भंज भज कालिख, सालिख सुन्दर काव्य बनावत।।
स्वरचित मौलिक । ।कविरंग ।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)
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