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सास बहु का एक प्रश्न

एक प्रश्न -

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' अरी बहू...! खाना डाल...कब से कह रहीं हूँ...सुनती ही नहीं...कानों में रुई डाले बैठी है क्या ...? ' सासू माँ ने बहू को फिर से आवाज़ लगायी। 

     ' अभी लाती हूँ माँजी...।' बहू रमा ने अपने दाँत किटकिटाते और मुँह बिगाड़ते हुए जवाब दिया। 

     ' रमा...जा...पहले अपनी सास को खाना देकर आ ।बातें तो होती रहेंगी। ' पास में बैठी और बातें कर रही उसकी प्रिय सखी मीना ने तत्काल उसे सलाह दी ।

     ' मीना... तुझे नहीं मालूम ... कितना दुखी कर रखा है इस बुढ़िया ने ...परेशान हो गयी हूँ इसके नखरों से...ये ला...वो ला...ना मरती है ना माचा छोड़ती है बुढ़िया...।' 

     ' नहीं रमा... तुझे ऐसा नहीं बोलना चाहिए । तेरी सोच गलत है। तुझे बुजुर्ग सास की सेवा करनी चाहिए। यही बहू का धर्म है। तेरी भी औलाद बड़ी हो गयी है। कल को तेरे भी बहू आने वाली है। तुझे भी इसी हालत से गुजरना है। तेरा भी बुढ़ापा आएगा । सेवा कर सेवा। अपनी सोच और नज़रिए को बदल... पगली... । ' कहते हुए नाराज सी मीना उठ खड़ी हुई और बिन बतियाए निकल गयी। 

      सहेली की कड़वी लेकिन सच बात को सुन रमा बुत बनी सोचती रह गयी । मीना उसके सामने एक प्रश्न छोड़कर चली गयी थी जिसका समाधान उसे खुद ही करना था। 
                              .....

  

-- रशीद ग़ौरी 
   21- समीर दिल्ली दरवाजा कॉलोनी,
   सोजत सिटी 

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