असिफा
वो तड़प रही थी मन्दिर में
जहाँ देवताओं का वास है,
मनमानी चल गई पापियों की अब पूरा देश उदाश है,,
वो कहाँ गये हैं रूप सभी जो देवियों के अवतार है,
एक मासूम को थे हैवान नोच रहे,
और भगवन अब भी शान्त हैं,,
अब क्यों न आया कृष्ण कोई नारी की लाज बचाने को,
हैं दुशाशन तो जन्मे बहुत,
क्या कान्हा गया है, माखन खाने को,,
कितनी पीड़ा होगी सही, क्या महसूस तुम कर पाओगे,
वो चली गई इस जग को छोड़ क्या शीश उठा के जी पाओगे,,
अब बेटियाँ हैं बोल रहीं-बापू वन से डर न लागे है,
इतना भय तो पशुवों से भी क्या,
जितना इंशान को देख मन भागे है,,
ओ जनता के रखवाले तेरे हाथ बिका है ये संसार,
तेरे अपनो ने ही छीन लिया खुशियों भरा एक परिवार,,
अब तेरी कितनी भी निंदा हो,
तुझपे न कोई फरक पड़े,
तेरी आदत है सदा मिथ्या बोलना,
तेरे आगे न कोई टिके,,
थोड़े धन की खातिर तूने इक जीवित लक्ष्मी गँवाई है,
इसमे तेरा कोई दोष नहीं ये तो परम्परा चली आई है,,
अब शिसकियाँ भरे हिन्दुस्तान,
चाहे बिलख-बिलख कर दे-दे जान,
वो पल अब न आने वाला न *असिफा* को लौटाने वाला,,
अब भी समय है थोड़ा सा
मेरी बातों पर ध्यान दें,
कहीं ऐसा न हो इस उलझन में एक और *असिफा* अपने प्राण त्याग दे,,
*कुछ कर सकते हैं अब अगर नहीं, तो माँ-बाप की ये पुकार सुने,,*
अब आँखों से बन कर आँसू हर सपने हैं मेरे बहे,
मुझे न्याय चाहिये-न्याय चाहिये,
ये चीख-चीख माँ-बाप कहें।।
क्या इन्साफ मिलेगा
✍🏻लेखक-लखनवी आकाश ठठेर
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