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समसामयिक कविता


विषय : बढ़ती मंहगाई पर पति पत्नी संवाद
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पति कवि हो तो पत्नी पर भी उसका असर पड़ ही जाता है । और जब ऐसा होता है तो गृहस्थी अपने आप में एक कविता बन जाती है ।
नहीं मानते ???

तो खुद देख लीजिए -

पत्नी ( किचन में ) -

" चावल महंगा , सब्जी महंगी
  महंगे आटे दाल
 क्या पकाऊं , क्या खिलाऊं
 मुश्किल बड़ा सवाल !!"

पति ( दाढ़ी बनाते हुए ) -

" सच कहती हो लक्ष्मी रानी
  मैं भी हूं परेशान
  महंगाई के चलते छोड़ा
  जाना नाई दुकान "

पत्नी -

" अजी ! बाल तो ना भी काटें
  भूख कहां ले जाएं
  समझ न आए , घर की चक्की
  कैसे किधर चलाएं "

" तुम भी तो हो बड़े निखट्टू
  करते काम न काज
 कलम उठाए बनते फिरते
 गुंगों की आवाज "

" जग्गू दादा , फिरतू नेता
  और नेता के लोग
  देखो इनको , कहां सताता
  मंहगाई का रोग ? "

पति -

" सच कहती हो , लेकिन समझो
  मैं ठहरा नादान
  उनकी तरह टांग न सकता
  खूंटी पर ईमान "

" मंहगाई के दौर में सस्ते
  पड़ते तीन सामान
  कलम कवि का , हल किसान का
  और फौजी की जान "


समर नाथ मिश्र
रायपुर

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