तन्हाई की साया
फागुन से आरंभ होते हैं
या तो बहुत ठंड में
उससे भी आगे
हर मौसम में, हर साल में
प्रकृति के नियमों से
कोई एक छोटी से मिट्टी के घर
जिसे ढक कर रखा है
यहाँ पर धरती सिकुड़ जाती है
एक बूंद पानी के अभाव से
नहीं देख सकते हवा के साथ
एक सुंदर सजा हुआ बुना हुआ
एक संकल्प की गंध
फूलों के साथ एक संगीत की धुन
ना जाने कब बारिश की पानी से
या पांच साल पहले कोई अधूरी एक ख्वाब
तरह बारिश की बूंदे दिखाई दिए थे
तब पेड़ो में प्राण थे, एक सादगी थी
अब आकाश में एक तन्हाई की साया है
रजत सान्याल
बिहार
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