उदास सुबह
सुबह इस समय में अकेले बैठा हूँ
धूप जो हमारे जीवन में एक संभावना देती हैं
जीना सिखाती हैं
धूप भी खिड़की के आकर रुक जाती हैं
कभी कभी खिड़की से आदमी भी
दिखाई देते है
कभी कोई छाया जैसा
मन के अंदर बहुत कुछ चलता रहता हैं
कभी सुनता हूँ कोई शब्द ,समुंदर की लहरों की पुकार
फिर महसूस करता हूँ कि मैं खड़ा हूँ
एक अलग समय के पास,डरा हुआ
और प्यार छू कर जाती है एक
अनंत आकाश के नीचे
रजत सान्याल
बिहार
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