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बहुत कुछ अनकहा bahut kuchh Ankaha अंजू अग्रवाल

बहुत कुछ अनकहा

जिंदगी में कई ख्वाब
कई सपने और ढेर सारी उम्मीदें
आंखों की पलकों के नीचे दबी
हज़ारों आशाएं
अधरों के बीच से
निकलती हर रोज दुआएं
कितना कुछ कहती है ....! 
बयां करती तकदीर
हाथों की हथेलियों की रेखाएं
अचेतन मन में प्रस्फुटित
लाखों आकांक्षाएं
हर्ष से उल्लासित
मन की कोरी कल्पनाएं
कितना कुछ कहती है......! 
पदचाप से निशान छोड़ती हुई
यादों के बरक्स जीवन की क्रियाएं 
प्रेम और स्नेह से परिपूर्ण
रिश्तों की नई गांठे
हर पल हर क्षण
दौड़ती हुई 
इन्द्रिय परिकल्पपनाएं
कितना कुछ कहती है ...! 
डूबकर किसी एक गठजोड़ में
पूरी करती हुई प्रतीत होती
सारी जीवन की आशाएं
हर राह पर खुद को मजबूत समझती
कैसी ये दिमाग की महत्वाकांक्षाएं
कितना कुछ कहती है.....! 
दूर तलक बैठ कर कहीं
देख फलक के इशारों को
प्रकृति से बात करने की
उत्सुकता से भरी ये रसनाएं
घन घोर अंधेरे में भी तलाशे
काले कागज़ पर लिखी
स्याही से चंद लाइनें
कितना कुछ कहती है....! 
वक़्त नहीं किसी के पास इतना
कर ले जो दीदार अपना
हर वक़्त दूसरों में तलाशे
जीने की खुशनसीबीयां
कितना कुछ कहती है ....!


अंजू अग्रवाल (शिक्षिका और कवयित्री)
अलवर ( राजस्थान)

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