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ग़ज़ल Ghazal सागर समीक्षित

Ghazal 

हमारा मूड कुछ अच्छा नहीं था 
सो हमने फिर उसे रोका नहीं था

मरासिम मिट गया खुद ही हमारा
क़सम से! दरमियां झगड़ा नहीं था

किसी की आंख में आंसू नहीं थे 
किसी की ख़्वाब में तारा नहीं था 

न वो दुनिया की अव्वल माशूक़ा थी
इधर का इश्क़ भी पहला नहीं था 

अब उसका फ़ोन नंबर खो गया है 
वो वैसे भी कभी उठता नहीं था 

हवा जैसी हक़ीक़त थी मोहब्बत 
किसी ने भी उसे देखा नहीं था 

बहुत अच्छे हैं बाक़ी लोग सारे 
चलो हां ठीक ! मैं अच्छा नहीं था

- सागर समीक्षित 

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